स्टाक एक्सचेंज की कार्य प्रणाली | Stock exchange किस प्रकार काम करता है?

May 16, 2021
स्टाक एक्सचेंज की कार्य प्रणाली | Stock exchange किस प्रकार काम करता है?स्टाक एक्सचेंज की कार्य प्रणाली | Stock exchange किस प्रकार काम करता है?

शेयरो की खरिदी एवं बिक्री का जो रिकार्ड रखता है उसे स्टाक एक्सचेज कहते है। स्टाक एक्सचेज को अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर भी कहा जाता है। सबसे पहले स्टाक एक्सचेज 1931 मे अस्तीत्व मे आया। इसके बाद निदरलेण्ड के एम्सटर्डम मे 1602 मे इसकी स्थापना हुई । भारत मे यह 1875 मे मुम्बई मे स्थानीय दलालो के एसोसिएशन के रुप मे सामने आया इसका नाम नेटिव शेयर एंड स्टाक ब्रोकर एसोसिएशन रखा गया। यह एसोसिएशन सबसे पहले एक बरगद के पेड के निचे खडे होकर शेयर खरीदी व बिक्री करता था।

इसी के साथ बरगद के पेड के निचे ही B.S.E की स्थापना हुई और सन 1874 मे एक स्थानीय जगह मिली जिसे आज दलाल स्ट्रीट कहा जाता है। 1994 मे नेशनल स्टाक एक्सचेज का कार्य प्रारंभ हुआ। आज वर्तमान मे कई Stock exchange भारत मे काम कर रहे है परंतु इनमे से B.S.E और N.S.E मुख्य है। भारत मे इन स्टाक एक्सचेज को प्रतिभूति संविदा नियमन अधिनियम 1956 के अधीन मान्यता दी गई।

स्टाक एक्सचेंज की कार्य प्रणाली | Stock exchange किस प्रकार काम करता है?
Stock exchange

कम्प्यूटरीकृत कारोबार (Computerized business)

बरगत के निचे खडे होकर अब कारोबार नही होता है। आज हम 21 वीं सदि मे है ओर हर काम कम्प्यूटर के माध्यम से होता है। B.S.E और N.S.E  भी शेयर का समस्त लेन देन कम्प्यूटर के माध्यम से करती है जिसमे की पारदर्शीता और रियल टाइम ट्रेडिंग की जा सकती है ।

स्टाक एक्सचेज सभी स्टाक को कम्प्यूटर मे लिस्ट करने के बाद उनके दाम डाल देते है उसके बाद उनमे खरीदी बिक्री होती है। अब आपको शेयर खरीदने या बेचचे दलाल स्ट्रीट (Dalal Street) नही जाना पडता आप सिधे अपने कम्प्यूटर,लेपटाप या स्मार्ट फोन के जरिये अपने ब्रोकर फर्म से डायरेक्ट शेयर पारदर्शीता के साथ खरिद एवं बेच सकते है।

आनलाइन शेयर खरिदने एव बैचने के लिये सोमवार से शुक्रवार तक सुबह 9.15 से शाम 3.30 तक आप शेयर खरिद एवं बैच सकते है। इसके अलावा जो समय मे बदलाव होता है वह प्रेस ओर मिडीया द्वारा बता दिया जाता है।

डी-मैट अकाउंट ( Demat account)

डी-मैट का अर्थ होता है – डीमैटीरियलाईज (Dematerialization) , इसका मतलब है आपको किसी कम्पनी की सम्पत्ती अभोतिक तरिके से प्राप्त हो गई है। इसका हिसाब रखने के लिये डिमैट अकाट की व्यवस्था कि गई है। ताकि भोतिक लेन देन मे होने वाली धान्दली (धोखाधडी) से बचा जा सके।

यदि यह व्यवस्था नही होती तो कई सारे नकली शेयर बाजार मे होते और उनका लेन देन होता रहता और निवेशको को कई सारे नुकसान होते।  डिमेट अकाउन्ट के लिये आपको किसी ब्रोकर फर्म से सम्पर्क करना होता है । ब्रोकर फर्म एक डिपाजीटरी बैंक की तरह ट्रस्टी (trustee) होता है। जो शेयर, बाण्ड, सिक्यूरिटी आदि को इलेक्ट्रानिक फार्म मे रखते है। डिमैट अकाउंट खोलने के बाद आप इन इलेक्ट्रानिक प्रतिभुति को सिधे डिमेट से पेसे देकर खरीद सकते है।

डिपाजिटरी क्या है? (Depository क्या है)

भोतिक शेयर व सिक्योरिटी के धेखा धडी से बचने के लिये व  लेन देन पर नजर रखने के लिये भारत सरकार द्वारा डिपॉजिटरी सिस्टम (depository system) को अपनाने का निर्णय लिया जिसमे की प्रत्यक्ष लेन देन ना होकर अप्रत्यक्ष अर्थात डिजीटल लेन देन हो जिससे की उसपर नजर रखी जा सके। 1992 हर्षद मेहता स्केम के बाद यह बहुत जरुरी भी हो गया था कि शेयर के प्रमाण पत्रो का भोतिक आदान प्रदान काफी ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है।

भारतीय प्रतिभूति एवं एक्सचेज बोर्ड SEBI डिपाजिटरी अधिनीयम के अन्तर्गत 1996 मे  दो डिपाॅजिटरी कम्पनी नेशनल सिक्युरिटी डिपाॅजिटरी लिमिटेड व सेन्ट्रल डिपाजीटरी सर्विस इंडिया लिमिटेड को पंजीकृत किया। पूरे भारत मे ये दो डिपाॅजिटरी सभी डिमैट अकाउंट पर नजर रखती है । बैंको ओर स्टाक ब्रोकर को ये डिमेट अकाउंट खोलने की अनुमती देती हैै।

शेयरो का डीमैटीरियलाइजेशन केसे होता है? (Dematerialization)

आज सभी शेयर Dematerializationके तहत ही खरिदे व बेचे जाते है। पहले जब शेयर भोतिक रुप से आदान प्रदान किये जाते थे। चुकि Dematerialization प्रक्रिया के आने के बाद वह शेयर Dematerialization करना अनिवार्य हो गया जिससके लिये सबसे पहले शेयर धारक को डिमेट अकाउट खोलना होता है उसके बाद अपने शेयर प्रमाण पत्र को रद्द करना पडता है ओर अपने डी.पी. को देना होता है उसके बाद आपको एक डी-मैट रिक्वेस्ट फार्म भरकर देना होता हैं जिसमे आपके शेयरो की संख्या सर्टिफिकेट नम्बर आदि जानकारी होती है ।

उसके बाद आपका डी.पी. या ब्रोकर उक्त रिक्वेस्ट फार्म कम्पनी को भेज देती है उसके बाद कम्पनी उक्त सभी की प्रमाणिकता की जांच कर लेने के पश्चात शेयर को डीपी या ब्रोकर के खाते मे जमा कर देती है फिर ब्रोकर खाता धारक के खाते मे डाल देती है। इस प्रकार से शेयरो का डीमैटीरियलाइजेशन होता है।

Dematerialization

डीमैटीरियलाइजेशन ( Dematerialization ) के क्या लाभ है?

पूर्व मे जब भोतिक लेन देन होता था तो शेयर धारक ओर डीपी को कई सारी प्रक्रिया से गुजरना पडता था जिसमे काफी समय और मशक्कत होती थी परंतु Dematerialization होने के बाद ये सभी काम चुटकियो मे होने लगे जो इस प्रकार है

  • सिक्यूरिटी का तुरंत हस्तांतरण
  • सटाॅम्प ट्युटी से छुटकारा
  • सिक्युरिटी ट्रांसफर के लिये लम्बाचोडा फार्म नही भरना पडता है।
  • शेयर के नकली या चोरी के शेयर होने का खतरा नही रहता।
  • डी-मैट प्रणाली के माध्यम से छोटे निवेशक छोटे लाट मे शेयर का लेन देन कर सकते है
  • नामीनेशन की सूविधा होती है जिसमे आप अपने नामिनी का नाम दर्ज कर सकते है यदि कोई अनहोनी होती है तो सिधे नामिनी को ये शेयर अविलम्ब मिल जाते है।
  • कम्पनी से मिलने वाले बोनस शेयर, डिवीडेड सिधे आपको बगेर देरी के मिल जाते है।

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