कम्पनी के फंडामेंटल एनालिसिस करने के लिये बैलेंस शीट एक महत्वपुर्ण वित्तीय लेखा जोखा है जिससे की एक निवेशक को और कम्पनी के एनालिसिस करने वाले व्यक्ति को उस कम्पनी के समस्त वित्तीय असेट्स और लायबलिटी के बारे मे पता चलता है। आइये जानते है बैलेंस शीट क्या है और इसका अध्ययन केसे किया जाता है।
बैलेंस शीट क्या है?
बैलेंस शीट एक वित्तीय स्टेटमेंट होता है जिसमे की कम्पनी के सभी दायित्व और संपत्तियां शामिल होती है। अर्थात कम्पनी के पास उपलब्ध अपने स्वमित्व के एसेट्स और लायबलिटी का ब्योरा बैलेंस शीट कहलाता है। इसे तुलना पत्र भी कहा जाता है जिसमे कम्पनी के एक वित्तीय वर्ष का बैलेंस का सार होता है। उस वित्तीय वर्ष के अंत मे उस कम्पनी की संपत्तियां और देनदारियो के साथ शेयरधारको की इक्विटी शामिल होती है।
बैलेंस शीट मे दो भाग होते है पहला भाग Liabilities और दुसरा Asset
- Liabilities – कम्पनी की जो देनदारिया होती है जो कम्पनी को किसी अन्य को चुकाना होता है वह लायबिलिटी वाले भाग मे लिखा जाता है। जैसे कम्पनी के लोन, कच्चे माल का बकाया, शार्ट टर्म लोन आदि
- Asset – कम्पनी की जो समपत्ति है अर्थात कम्पनी का इंफ्रास्ट्रक्चर, उसके प्लांट, नगदी आदि इस भाग मे लिखा जाता है। जैसे कम्पनी की बिल्डींग, उसका प्लांट, बैंक मे जमा नगदी आदि
बैलेंस शिट को हम कम्पनी के आफीसियल वेबसाईट या स्क्रीनर की मदद से देख सकते है यहां एक बैलेंस शिट का नमुना दिया गया है
बैलेंस शीट कैसे बनाएं?
बैलेंस शीट बनाने के लिये आपको दो चिजे समझना होगी जिनकी हमने पूर्व मे बात की है। एसेट और दुसारा है लायबलटी। अब हमने यह समझ लिया है तो इसे बनाना आसान हो जाता है। बैलेंस शीट बनाने के लिये दो पक्ष होते है जिसमे वेल्यु को डाला जाता है, इन दोनो पक्षो मे कोन कोन से तत्व आयेंगे आगे जानते है.
Balance Sheet में बायें पक्ष को Liabilities (दायित्व) कहा जाता है तथा दायें पक्ष को Assets (सम्पत्ति)कहा जाता हैं।
Liabilities Side में पांच शीर्षकों को दिखाया जाता है :
इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित तरह के Liabilities को दिखाया जाता है
- Share Capital (अंश पूंजी )
इस के अंतर्गत निम्नलिखित तरह के पूंजी को दिखाया जाता है :
- Equity Share Capital (समता अंश पूंजी )
- Preference Share Capital (पूर्वाधिकार अंश पूंजी )
2. Reserve And Sur-Plus Income (संचित एवं आधिक्य)
- General Reserve (सामान्य संचित)
- Capital Reserve ( पूंजी संचित)
- P/L (Cr.) (लाभ-हानि जमा)
- Security Premium (प्रतिमूर्ति प्रब्याज)
- Share Forfeiture (अंशों का हरण)
3. Secured Loans (सुरक्षित ऋण)
इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित तरह के Liabilities को दिखाया जाता है
- Debenture (ऋणपत्र)
- Bonds (बंधन)
- Bank Loan (अधिकोष ऋण)
- Mortgage Loan ( बन्धक ऋण )
4. Current Liabilities (चालु दायित्व)
इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित अल्पकालीन Liabilities को लिखा जाता है
- Creditor (लेनदार)
- B/P (देय विपत्र )
- Bank Overdraft ( बैंक अधिविकर्ष)
- Outstanding Expense (अदत्त व्यय)
- Advance Income (अग्रिम आय)
5. Provisions ( प्रावधान)
इस शीर्षक के अंतर्गत निम्नलिखित Provisions को लिखा जाता है
- Provision For Bad Debts (अप्राप्य ऋण के लिए प्रावधान )
- Provision For Taxation (करो के लिए प्रावधान )
- Provision For Repairs ( मरम्मती के लिए प्रावधान )
Assets Side में आने वाले मदों को दिखाया जाता है
- Fixed Assets (स्थायीसम्पत्ति)
जिस सम्पत्ति में बराबर परिवर्तन नहीं होता है, उसे इस शीर्षक के अंतर्गत दिखाया जाता है। इसमें आने वाले मदों का नाम इस प्रकार है
- Land And Building
- Plant And Machinery
- Furniture And Fixture
- Loose Tools
- Goodwill
- Patent Right
- Trade Marks
2. Current Assets (चालूसम्पत्ति)
- Cash
- Bank
- Debtors
- B/R
- Investment
- Stock
- Prepaid Expense
- Accrued Income
3. Miscellaneous Expenditure (विविध)
- Preliminary Expense (प्रारंभिक व्यय)
- Discount On Issue Of Shares (अंशो के निर्गमन पर कटौती)
- Discount On Issue Of Debentures (ऋणपत्रों के निर्गमन पर कटौती )
- Expense On Issue Of Shares (अंशो के निर्गमन पर व्यय)
- Expense On Issue Of Debentures (ऋणपत्रों के निर्गमन पर व्यय)
- P/L (Dr.)
बैलेंस शीट को कैसे पढ़े?
बैलेंस शीट को पढने के लिये मुख्यतः चार बातो को ध्यान मे रखना होगा 1. Share Capital, 2. Other Liabilities 3. Fixed Asset 4. Other Asset.
इस चारो पांईट से हम बेलेंस शीट को आसानी से पढ सकते है और कम्पनी के हेल्थ का अंदाजा लगा सकते है।
1. Share Capital
किसी कम्पनी के कुल जारी किये गये शेयर को इक्विटी शेयर कहते है और इन शेयर की फेस वेल्य को कुल शेयर से जब गुणा किया जा है तो कम्पनी की इक्विटी शेयर केटिल निकल कर आता है।
रिर्जव – कम्पनी अपने पास हमेशा कुछ नगदी रखी है यह कम्पनी के प्राफिट मे से कुछ हिस्सा रखा जाता है।
बारोइंग या उधार – कम्पनी अपने अधार को इस कालम मे रखती है। यहां केवल लांग टर्म उधार को दर्शाया जाता है।
2. Other Liabilities
इसमे वह भाग आता है जो देनदारीयां कंपनी को कुछ समय मे भुगतान करना होती है। जैसे की वह कच्चे माल का उधार एक दो माह मे चुकाती है आदि।
3. Fixed Asset
- ग्रास ब्लाक – किसी कंपनी की कुल संपत्तियों की कुल किमत को ग्रास ब्लाक कहा जाता है और इस कॉलम मे दर्शाया जाता है।
- Accumulated Depreciation इस भाग मे जो कम्पनी की मशिनरी होती है उसमे से मुल्य हास को घटाया जाता है। इसे हर साल कम्पनी की वास्तवीक वेल्यु से कम कर दिया जाता है।
- केपिटल वर्क इन प्रोगेस – कम्पनी के सभी आपरेशन चलाने के लिये जो पुंजी काम मे आती है वह इस भाग मे दिखाई जाती है।
- इंनवेस्टमेंट – कम्पनी अपने प्राफिट मे से कुछ हिस्सा इंवेस्ट करती है जो कम्पनी जरुरत पडने पर निकाल सकती है। जब कंपनी का एक्सटेंशन का प्लान होता है तो यह हिस्सा निकाल लिया जाता है।
4. Other Asset
- Inventories – इनवेंटरी के अन्तर्गत वह माल आता है जो बेचने के लिये रेडी है पर अभी तक बेचा नही गया है, गोदाम मे रखा गया है।
- Trade Receivables – ट्रेड रिसिवेबल वह पैसा होता है जो कम्पनी को माल उधारी के बदले मिलने वाला होता है।
- Cash Equivalents – कम्पनी के पास जो केश अपने पास रखा होता है और वह माल जो जल्दी बिकने वाला है ओर उसका पैसा जल्द मिलने वाला होता है।
- Loans In Advances – कम्पनी द्वारा अपने सप्लायर को जो पैसा एडवांस मे दिया जाता है वह इस हिस्से मे लिखा जाता है।
- Other Asset etc – वे सभी एसेट जो उपर दिये गये भाग मे नही आते है वे इस हिस्से मे लिख दिये जाते है।