शेयर मार्केट मे कई सारी ऐसी शब्दावली है जो कि सामान्य रोज मर्रा के जिवन मे उपयोग मे नही आती है। निवेशको को यह जानाना बहुत जरुरी है। क्योकी शेयर मार्केट की शब्दावली तकनिकी रुप से भी महत्वपूर्ण है और इन्हे जानने के बाद शेयर मार्केट मे निवेस करना आसन ओर सहज हो जाता है। आइये जानते है शेयर बाजार की महत्वपूर्ण शब्दावली जो एक निवेश को पता होना चाहीये।
ऑर्डर बुक (Order book)
ऑर्डर बुक (Order book) में कंपनी के सभी ऑर्डर या डिमांड को मेंटेन किया जाता है। कंपनी जिस क्षेत्र में काम कर रही है उस क्षेत्र के लोग कंपनी से माल की डिमांड करते हैं जिससे कि ऑर्डर कहा जाता है, इस आर्डर का संपूर्ण लेखा-जोखा (Record) ऑर्डर बुक में होता है कंपनी के पास हर समय उसकी सप्लाई के अनुसार ऑर्डर होना चाहिए जिससे कि कंपनी को अच्छा माना जाता है।
आउटलुक (Outlook)
आउटलुक का अर्थ है दृष्टिकोण या संभावना। इसका उयोग सामान्यतः किसी कम्पनी की रेटिंग के लिये होता है। जब कम्पनी का विशलेषण किया जाता है तो कहा जाता है कि आउटलुक (Outlook) पर ध्यान देना चाहीये। आउटलुक पॉजिटिव, निगेटिव या सामान्य हो सकता है। निवेशक को निवेश करने से पहले कम्पनी के आउटलुक पर ध्यान देना चाहीये।
आर्बिट्रेज(Arbitrage)
जब कोई शेयर (Share) को कम भाव में खरीदता है और उसे अधिक दाम पर बेच देता है। तो इस प्रवृत्ति को आर्बिट्राज कहा जाता है। इसे इस प्रकार भी देखा जाता है, अलग-अलग इंडेक्स (Index) पर शेयर के अलग-अलग भाव होते हैं जिसमें की कम भाव पर खरीद लिया जाता है, और अधिक भाव पर इसे बेच दिया जाता है। इस प्रकार सौदा करने के लिए ब्रोकर कुछ लोग स्टाफ के रूप में रखता है जो यह काम करते हैं।
आर्बिट्रेशन (Arbitration)
आर्बिट्रेशन का अर्थ होता है विवाद को निपटाना। जब शेयर बाजार में निवेशक ब्रोकर या ग्राहक के बीच में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो इसे निपटाने के लिए इस एक मध्यस्थ (mediator) को नियुक्त किया जाता है। जिसे आर्बिट्रेटर (arbitrator) कहा जाता है और इस विवाद को निपटाने की प्रक्रिया को आर्बिट्रेशन (arbitration) कहा जाता है। इस प्रक्रिया की संपूर्ण निगरानी एक्सचेंज द्वारा की जाती है।
एलॉटमेंट (allotment)
जब कंपनी बाजार में आईपीओ (IPO) लेकर आती है तो निवेशक द्वारा आईपीओ (IPO) के लिए आवेदन किया जाता है। निवेशक को आवेदन के अनुसार आईपीओ (IPO) उपलब्ध करा दिए जाते हैं, जिसे की अलॉटमेंट (allotment) कहते हैं।
ऑक्शन(auction)
ऑक्शन (auction) का अर्थ होता है नीलामी। जब कोई निवेशक शेयर खरीदता है और ब्रोकर उसे डिलीवरी (delivery) देने में सक्षम नहीं होता, तो ऐसी स्थिति में स्टॉक एक्सचेंज (Stock exchange) ऑक्शन के द्वारा उतने ही शेयर की नीलामी करता है। इसके विपरीत जब कोई इंट्राडे ट्रेडर शेयर को खरीदता है, और सोदे का निपटान नहीं करता है, तो उसके शेयरों की नीलामी कर दि जाती है। इसी प्रक्रिया को ऑक्शन (auction) कहते हैं।
एसटीटी (STT)
सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टेक्स को सारांश में एसटीटी कहते हैं। सरकार के `कर नियम` (tax rules) के अनुसार शेयर सिक्युरिटीज के प्रत्येक सौदे पर एसटीटी लागू होता है। सरकार को इस मार्ग से प्रतिदिन भारी राजस्व (revenue) मिलता है। यह `कर` ब्रोकरों को भरना होता है हालांकि ब्रोकर इसे अपने ग्राहकों से वसूल लेते हैं। प्रत्येक कांट्रेक्ट नोट या बिल में ब्रोकरेज के साथ-साथ एसटीटी भी वसूला जाता है।
एफआईआई(FII)
एफआईआई एक (यानि की फॉरेन इंस्टिट्युशनल इन्वेस्टर, foreign institutional investor) ऐसा शब्द है, जो शेयर बाजार से जुड़े हर व्यक्ति को सुनने को मिलता है। और इस शब्द से निवेशक चोकन्ने हो जाते हैं। क्योंकि यह विदेशी संस्थागत निवेशक होते हैं जो कि शेयर बाजार को अपने इशारों पर चलाते हैं। जब विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) बाजार में निवेश करते हैं तो बाजार की चाल बहुत ज्यादा तेज होती है, वही जब यह बाजार से पैसा निकालते हैं। तो बाजार में अत्यधिक गिरावट आ जाती है।
एक्स्पोज़र (exposure)
शेयर बाजार में एक्सपोजर (exposure) का मतलब जोखिम लेना होता है। जब कोई निवेशक किसी कंपनी या सेक्टर में निवेश करता है। तो वह उस कंपनी या सेक्टर में एक्स्पोज़र (exposure) लेता है, अर्थात जोखिम लेता है। इसका सबसे ज्यादा उपयोग फ्यूचर कांट्रैक्ट (future contract) में किया जाता है क्योंकि फ्यूचर कांट्रैक्ट में काफी ज्यादा संभावना होती है कि शेयर का मूल्य घट या बढ़ जाता है।
ब्लू चिप (blue chip)
ब्लू चिप (blue chip) नाम ऐसे शेयर को दिया जाता है जिसके कि फंडामेंटल बहुत मजबूत होते हैं। और यह अच्छे रिटर्न देने वाले होते हैं, इनमें जोखिम की संभावना कम होती है,यह शेयर निवेशक ओके पसंदीदा शेयर होते हैं।
बोल्ट
बोल्ट अर्थात मुंबई स्टॉक एक्सचेंज (Mumbai Stock Exchange) ऑनलाइन ट्रेडिंग, बी एस ई अपने सदस्यों को एक ऑनलाइन स्क्रीन आधारित टर्मिनल (Online Screen Terminal) उपलब्ध कराती हैं ,जिसे बोल्ट कहा जाता है।
बेस्ट बाय (best Buy)
बेस्ट बाय का मतलब यहां पर शेयर की कीमत या उस शेयर से है जोकि अधिक मुनाफा देगा इस प्रकार के शेयर का भाव भविष्य में बढने की काफी ज्यादा संभावना होती है। इसलिए इन्हें बेस्ट बाय (best Buy) कहा जाता है।
बबल (bubble)
बबल (bubble) का अर्थ बुलबुला होता है, शेयर बाजार में इसका उपयोग किसी शेयर के बढ़ते हुए भाव और अचानक से गिर जाने पर उपयोग किया जाता है ऐसा माना जाता है कि बुलबुले की तरह शेयर के भाव बढ़े और धड़ाम से फट गए।
करेक्शन (Correction)
जब शेयर बाजार अत्यधिक ऊपर जाता है या अत्यधिक नीचे जाता है तो इसमें जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है। लगातार ऐसा होने के बाद शेयर बाजार वापस सामान्य स्थिति में आने लगता है, इसी को करेक्शन (Correction) कहा जाता है। करेक्शन (Correction) शेयर बाजार के लिए अच्छा होता है।
कॉरपोरेट एक्शन (corporate action)
जब कंपनियां शेयर धारकों से जुड़े निर्णय लेती है ,जैसे कि बोनस शेयर देना, डिविडेंड देना, बाय बैक करना आदि तो इसे कारपोरेट एक्शन (corporate action) कहा जाता है।
कॉन्ट्रैक्ट नोट (contract note)
जब बाजार से शेयर की खरीदी बिक्री होती है तब ब्रोकर अपने ग्राहकों को कॉन्ट्रैक्ट नोट (contract note) देता है ,जिसमें की उस शेयर के लेनदेन से संबंधी भाव कीमत कमीशन टैक्स (commission tax) अधिक जानकारी होती है।
डिलिस्टिंग (delisting)
जिस प्रकार कंपनियां शेयर बाजार में अपने शेयरों की लिस्टिंग (listing) करवाती है, उसी प्रकार कई बार ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती है जिसके चलते कंपनियों को शेयर बाजार से डिलिस्टिंग (delisting) कर दिया जाता है। अर्थात इसके बाद में शेयरों की खरीदी एवं बिक्री स्टॉक एक्सचेंज (stock exchange) पर नहीं होती है। डीलिस्टिंग के कई सारे कारण हैं जैसे कि फीस ना भरना, लिस्टिंग के नियमों का पालन ना करना आदि।
लिस्टिंग (listing)
आईपीओ (IPO) जारी करने के बाद में कंपनी के शेयर को Stok exchange पर सूचीबद्ध किया जाता है इसे स्टॉक लिस्टिंग किया जाता है। लिस्टिग के बाद स्टाक एक्सचेंज पर कम्पनी के शेयर की खरिदी व बिक्री होती है
DP (डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट)
डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (DP) स्टॉक एक्सचेंज और शेयर मार्केट निवेशक के बीच वह कड़ी होती है, जो सिक्योरिटी को संभाल कर इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) रूप में रखता है। हमारे देश में NSDL (National Securities Depository)और CDSL (Central Depository Services India Ltd) दो डिपॉजिटरी है।
डायवर्सिफिकेशन (diversification)
संपूर्ण जगत में एक कहावत प्रचलित है कि सभी अंडे एक टोकरी में नहीं रखनी चाहिए। इसका अर्थ होता है कि जब आप निवेश करें तो अपने सभी पैसे एक ही शेयर(Share) में ना लगाएं ,बल्कि इन्हें अलग-अलग सेक्टर (Sector) में निवेश करें जिससे कि आपको कम रिस्क उठाना पड़े और अधिक फायदा हो।
डिसगोर्जमेंट (Disgorgement)
जब कोई भी व्यक्ति गैर वैधानिक तरीके से घोटाला (Scams) करता है तो SEBI उसके संपूर्ण मामले की जांच का अधिकार रखती है और सही पाए जाने पर डिसगोर्जमेंट (Disgorgement) ऑर्डर पास करती है और घोटाले की रकम को वसूल करती है।
इस्यूअर (issuer)
प्रतिभूतियां जारी करने वाली कंपनी या संस्थान को इस्यूअर (issuer) कहा जाता है। साधारण शब्दों में शेयर या प्रतिभूतियां (securities) जारी करने वाली कंपनियों या संस्थाओं को इस्यूअर (issuer) कहा जाता है।
फंडामेंटल (fundamentals)
फंडामेंटल (fundamentals) आपने कई बार सुना होगा या कई सारी रिपोर्ट्स में पढ़ा होगा, अर्थात फंडामेंटल (fundamentals) का अर्थ होता है उस के मूलभूत तत्व यदि फंडामेंटल (fundamentals) अच्छे हैं और मजबूत हैं तो कंपनी की ग्रोथ काफी अच्छी होती है और यदि फंडामेंटल कमजोर है तो कंपनी की ग्रोथ भी कमजोर होगी।
गाइडेंस (Guidance)
कई बार कंपनियां अपने कारोबार के संबंधित, टर्नओवर से संबंधित या नए इंफ्रास्ट्रक्चर (infrastructure) के संबंध में संकेत देती है तो इसे गाइडेंस (Guidance) कहा जाता है सामान्यता आईटी सेक्टर की कंपनियां इस शब्द का उपयोग ज्यादा करती है।
गाइड लाइन अर्थात मार्ग रेखा
SEBI शेयर बाजार अथवा बाजार के मध्यस्थतों के लिए जब-जब भी नीति-नियम (rules and regulations) जारी करती है, तो उसे मार्ग रेखा (route line) कहा जाता है। इनका पालन करना आवश्यक होता है। दूसरे शब्दों में इसे शर्त एवं नियम भी कहा जा सकता है।
केवाईसी (KYC)
Know Your Client / Customer इस का फुल फॉर्म होता है। केवाईसी (KYC) आज काफी महत्वपूर्ण चीज बन गया है, जिस के बगैर ना बैंक में खाता खोला जा सकता है और ना ही किसी प्रकार का वित्तीय लेनदेन किया जा सकता है। केवाईसी के अंतर्गत आपके नाम संबंधी दस्तावेज, पते संबंधी दस्तावेज, जन्म तारीख और अन्य जानकारी वाले दस्तावेज हो सकते हैं।
लिक्विडिटी (liquidity)
लिक्विडिटी का सामान्य अर्थ होता है प्रवाहित होना। शेयर बाजार में शेयर की सामान्य खरीदी बिक्री होने पर लिक्विडिटी (liquidity) अच्छी होती है परंतु जब बाजार में डिमांड (demand) बढ़ जाती है और शेयर की कमी होती है तो लिक्विडिटी कम हो जाती है। इसी प्रकार जब शहर की डिमांड शेयर की डिमांड कम हो जाती है तो लिक्विडिटी (liquidity) अधिक बढ़ जाती है।
क्रैश होना
जब बाजार एक ही दिन में बहुत ज्यादा गिर जाता है या इंडेक्स 500-600 पॉइंट नीचे आ जाता है तो इससे मार्केट क्रैश (crash) होना कहा जाता है।
Pledged shares (गिरवी रखे गए शेयर)
शेयर एक वित्तीय सिक्योरिटी है जिसे की कोई प्रमोटर (Promoter) या निवेशक (investor) जिसके पास उसका पूर्ण अधिकार है। वह इन शेयरों को बैंकों के पास धन के लिए गिरवी रख सकता है, और इसके बदले वहां उधार ले सकता है। प्रमोटर (Promoter) भारी मात्रा में शेयरों को गिरवी (pledged) रख कर उधार लेते हैं।
पेनी स्टॉक (penny stock)
वे स्टॉक होते हैं जिनकी कीमत $1 से कम होती है, तो उन्हें पेनी स्टॉक कहा जाता है। पेनी स्टॉक (penny stock) बहुत ही छोटी कंपनियों के शेयर होते हैं जिन्हें निवेश अच्छे से पहचान सके तो भविष्य में यह स्टॉक इन्हें काफी ज्यादा मुनाफा दे सकते हैं।
प्रॉफिट (profit)
प्रॉफिट बुकिंग शेयर बाजार में काफी महत्वपूर्ण शब्द है। निवेशक हर समय प्रॉफिट बुकिंग (profit booking) की बात करते हैं और प्रॉफिट कमाने के लिए भरसक प्रयास करते हैं। जब किसी शेयर को कम दाम में खरीदकर अधिक दाम में बेचा जाता है तो इसे प्रॉफिट बुकिंग कहा जाता है।
पीबीटी (PBT)
प्रॉफिट बिफोर टेक्स (Profit before tax) – अर्थात सरकार को चुकाये जाने वाले करों के भुगतान के पूर्व का लाभ। पीबीटी वह मुनाफा है जिसमें सरकार को चुकाये जाने वाले करों (टैक्स) का समायोजन नहीं किया गया होता है।
रिकवरी (recovery)
शेयर बाजार जब काफी अधिक मात्रा में नीचे चला जाता है और उसके बाद यह ऊपर आने लगता है तो इसे रिकवरी कहते हैं। अर्थात शेयर में गिरावट के बाद जो तेजी आती है उसी को रिकवरी (recovery) कहते हैं।
रीलिस्टिंग (relisting)
जब कंपनियां स्टॉक एक्सचेंज से डीलिस्ट होने के बाद में वापस से टर्म और कंडीशन को मान लेती है और नियम पालन करने लग जाती है तो स्टॉक एक्सचेंज इसे वापस रीलिस्ट (relisting) कर देता है और रीलिस्ट कंपनियों के लिए अच्छा माना जाता है।
रोलबैक (rollback)
रोलबैक का अर्थ होता है किसी भी कंपनी द्वारा उठाए गए कदम या लिए गए निर्णय को वापस लेना। अर्थात यदि कोई कंपनी अपने निर्णय को वापस ले लेती है तो इसे रोलबैक (rollback) कहा जाता है।
रेटिंग (Rating)
रेटिंग एक सामान्य सा शब्द है जो कि किसी भी कंपनी, किसी उद्योग या किसी व्यवसाय की मानकता को दर्शाता हैया अर्थात जिसकी रेटिंग (Rating) ज्यादा होगी वह काफी अच्छा माना जाएगा और जिसकी रेटिंग (rating) कम होगी वह अच्छा नहीं माना जाएगा।
सर्किट ब्रेकर (circuit breaker)
सर्किट ब्रेकर शेयर की कीमत को नियंत्रित करने वाला एक घटक है, जो एक निश्चित मात्रा में प्राइस को घटने या बढ़ने से रोकता है। कोई भी शेयर सर्किट ब्रेकर प्राइस से नीचे या ऊपर 1 दिन में नहीं जा सकता।
सर्कुलर ट्रेडिंग
शेयर बाजार में एक विशेष वर्ग किसी एक शेयर को आपस में ही साठ गांठ करके एक दूसरे को खरीदना बेचना करते रहते हैं। जिससे कि सर्कुलर ट्रेडिंग कहा जाता है। सर्कुलर ट्रेडिंग किसी विशेष स्टॉक के आभासी ट्रेंड को बनाने के लिए किया जाता है। जिससे कि अन्य ट्रेडर को ऐसा लगता है कि शेयर एक विशेष चाल में चल रहा है और वे इस धोखे में आ जाते हैं।
स्टॉप लॉस (stop loss)
stop-loss का अर्थ होता है लॉस को स्टॉप करना। मतलब यदि किसी शेयर में आपको घाटा हो रहा है तो उसे कम करने वाले सर्किट को स्टॉप लॉस कहा जाता है। स्टॉप लॉस निवेशक अपने हिसाब से लगा सकते हैं।
सेबी (SEBI)
सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया, यंहा संपूर्ण शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाली संस्था है, जो कि सभी के अधिकारों को संरक्षित करती है से भी शेयर मार्केट से संबंधित रूल और रेगुलेशन भी बनाती है।
SAT अर्थात सिक्युरिटीज अपीलेट ट्रिब्युनल (एसएटी)
यह सेबी (SEBI) से सम्बद्ध एक न्यायालय के समान ज्युडिसरी बॉडी है। सेबी के आदेश के सामने सेट में अपील की जा सकती है। सेट के आदेश सेबी को मानने पड़ते हैं या सेबी (SEBI) उसके सामने भी अपील कर सकती है और हाईकोर्ट में भी अर्जी कर सकती हैं।
स्वीट शेयर (sweet share)
यह वे शेयर होते हैं जो कंपनी अपने कर्मचारियों और डायरेक्टर्स को कम कीमतों पर देती हैं। कभी-कभी कंपनी इन शेयर को फ्री में भी देती है।
सीक (Seek) कंपनी
ऐसी कंपनियां जिनकी नेटवर्थ net worth बिल्कुल खत्म हो चुकी है, और जो बीमारू हालत में हैं उन कंपनियों को सीक (Seek) कंपनी कहते हैं। इन कंपनियों में कोई भी निवेशक रुचि नहीं लेता है, और यह कंपनियां घाटे में जाती है और अंत में इन्हें wind up कर दिया जाता है।
सेलिंग प्रेशर (selling pressure)
सेलिंग प्रेशर शेयर बाजार में काफी ज्यादा उथल-पुथल मचाने वाला शब्द है। क्योंकि सेलिंग प्रेशर (selling pressure) के कारण शेयर बाजार में अत्यधिक मात्रा में शेयरों की बिक्री होती है, जिससे कि शेयर नीचे जाने लगते हैं। शेयर में सेलिंग प्रेशर कभी भी बन सकता है। सामान्यता यह ओवरबाट (overbought) होने पर होता है।
शॉर्ट कवरिंग (short covering)
जब किसी शेयर को शार्ट सेल किया जाता है और फिर उसे पुनः खरीदा जाता है तो इसे शार्ट कवरिंग (short covering) कहा जाता है। शेयर बाजार में मदढिए ऐसा करते हैं। क्योंकि जब शेयर को नीचे जाते हुए भाव में शॉर्ट सेल किया जाता है तो इसकी प्राइस काफी अधिक गिर जाती है ,और इन शेयरों को कम भाव में पुनः खरीद लिया जाता है।
डिस्काउंट (Discount)
किसी कंपनी के शेयर उसके मूल प्राइस से कम प्राइस पर उपलब्ध होते हैं तो इस स्थिति में डिस्काउंट प्राइस कहा जाता है। कभी-कभी कंपनी के शेयर अनुमान भाव से कम भाव पर मिलते हैं, तब भी डिस्काउंट प्राइस का उपयोग किया जाता है।
टॉप और बॉटम
जब कोई शेयर या इंडेक्स अपने ऊपरी स्तर पर पहुंच जाता है तो इसे टॉप कहा जाता है, इसी प्रकार जब शेयर अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच जाता है तो इसे बॉटम कहा जाता है।
टेकओवर
जब कंपनियां अपने ही सेक्टर की छोटी कंपनी को अपने में मिला लेती है, तो इसे टेक ओवर (takeover) कहा जाता है। कई सारी कंपनियां अपने सेक्टर की कंपनियों को अधिग्रहित (acquired) करके अपनी कंपनी में मिला लेती है। जिससे कि मिलाने वाली कंपनी का व्यापार और वैल्यू दोनों ही बढ़ जाते हैं।
यूसीसी (UCC)
युनिक क्लाइंट कोड (unique client code) – शेयर ब्रोकर के पास अपना पंजीकरण कराने वाले प्रत्येक ग्राहक को एक कोड नंबर दिया जाता है। ब्रोकर के पास शेयरों के सौदे लिखवाते समय ग्राहकों को यह कोड नंबर बताना होता है।
टारगेट (Target)
जब किसी शेयर को खरीदना या बेचना होता है तो उस शेयर का एक प्राइस निश्चित किया जाता है। जिसे टारगेट प्राइस कहा जाता है। जब शेयर खरीदना हो तो टारगेट पर हिट करने पर इसे खरीद लेते हैं, और जब Share को बेचना होता है तो प्रॉफिट टारगेट हिट करने पर इसे बेच दिया जाता है।
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