शेयर बाजार मे निवेश करने के लिये जब हम शेयरो का तकनिकी विश्लेष्ण करते है तो हम कई सारी बातो का ध्यान रखते है। जिसमे मे एक है आर ओ ई एक महत्वपूर्ण फेक्टर है जिससे की हम पता कर सकते है कि शेयर मे निवेश करना है या नही।
ROE क्या है?
ROE का फुल फार्म रिर्टन आफ इक्विटी (return of equity) है यह एक प्राॅफिटेबिलिटी रेशो (profitability ratios) है जो यह बताता है कि कम्पनी इक्विटी पर कितना प्राॅफिट दे रही है।
ROE एक वित्तीय अनुपात है जो निवेशक के निवेश पर लाभ कमाने की छमता को मापता है। इस प्रकार रिर्टन आन इक्विटी (equity) कम्पनी के निवेश पर प्रतिशत के रुपम मे प्राफिट को बताता है।
ROE को कैसे केलकुलेट किया जाता है
इसकी गणना कम्पनी की नेट इनकम मे शेयर होल्डर इक्विटी का भाग देकर निकाला जाता है जो कि प्रतिशत मे प्राप्त होता है।
ROE = Net Income / Total Equity
उदाहरण-
A Ltd. | X Ltd. | |
EBIT (Earnings before interest & taxes) | 10,000 | 12,000 |
Interest | (2,000) | (1,000) |
Profit before Tax (PBT) | 8,000 | 11,000 |
Tax (30%) | (2400) | (3,300) |
Profit after Tax (PAT) | 5,600 | 7,700 |
Shareholders Capital | 12,000 | 18,000 |
Reserves | 5,000 | 7,000 |
Preference Shares | 3,000 | – |
Net worth (Sh. Equity) | 20,000 | 25,000 |
(5,600 ÷ 20,000) × 100 | (7,700 ÷ 25,000) × 100 | |
ROE | 28% | 30.8% |
ROE के फायदे
के कई सारे फायदे है जिससे की शेयर को चुनने मे मदद मिलती है। किसी भी कम्पनी के शेयर खरिदनेे से पहले उसका ROE देखा जाता है.
ग्रोथ रेट का अनुमान लगाने मे
रिर्टन ऑन इक्विटी (ROE) द्वारा कंपनी की ग्रोथ का पता भी लगाया जा सकता है जितना ज्यादा रिर्टन रिशो (return ratio) रहेगा उतनी ज्यादा ही कम्पनी की ग्रोथ की संभावना होती है। आर ओ ई द्वारा डिवीडेंट की ग्रोथ का भी पता लगाया जाता है।
प्रतिद्वंदी कंपनियो के साथ तुलना करने मे सहायक
किसी एक जेसी सेक्टर की एक जैसी कम्पनीयो के तुलनात्मक अध्ययन (comparative study) मे भी आर ओ ई उपयोगी है वैसे तो कम्पनीयो की तुलना नही कि जा सकती पर जब निवेशक निवेश करता है तो यह जरुरी है कि वह समान सेक्टर की समान कम्पनीयो का तुलनात्मक अध्ययन करे और उसके बाद निवेश करे।
ग्रोथ की स्थिरता को ज्ञात करने मे
जब आप एक अस्थिर शेयर (volatile stock) का चुनाव कर लेते है तो आपको ग्रोथ की स्थिरता पता लगाने के लिये आर ओ ई का उपयोग किया जाता है। अगर आप किसी कंपनी के करंट ईयर के ROE को देखते हैं जो कि एक बढ़िया आर ओ ई हैं। ये ROE उस कंपनी की सम्पूर्ण स्थिति नहीं बताता। लेकिन आपको कंपनी के पिछले कुछ वर्षों के को देखकर अंदाजा लग जाता हैं कि कंपनी अपना अच्छा आर ओ ई मेंटेन कर पा रही हैं या नहीं।
समस्या को ढूंढने के लिए ROE का उपयोग
बहुत बार एक ऐसा ROE जो कि किसी अन्य कंपनी के ROE की तुलना में कम हैं परंतु फिर भी ये एक अच्छा ROE हो सकता हैं। क्योंकि hig ROE स्मॉल इक्विटी के कारण भी हो सकता हैं जो कि बहुत ज्यादा रिस्क को दर्शाता हैं। लेकिन जब यही hig ROE अपने ज्यादा प्रॉफिट के कारण हो तो इसे अच्छा माना जाता हैं।
ROE कितना होना चाहीये?
हालाकी कही भी ऐसा उल्लेख नही है की किसी कम्पनी का आर ओ ई (ROE) कितना होना चाहीये। सामान्यतौर पर किसी कम्पनी का आर ओ ई (ROE) 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के बिच होना चाहीये। बस कम्पनी के आंकडे सही हो । जिन कम्पनीयो का आर ओ ई इससे कम होता है उन कम्पनीयो को खराब आर ओ ई वाली मतलब कम रिर्टन देने वाली कम्पनी माना जाता है।
ROE की सीमाएं
आर ओ ई (ROE) की इतनी ज्यादा लोकप्रियता होने के बाद भी इसकी कुछ सीमाएं है । हम किसी भी कम्पनी को उसके आर ओ ई से नही माप सकते क्योकी यह केवल एक फाइनेंशियल रेशो है। कम्पनी के आर ओ ई के अलावा कई सारी चिजे होती है जो उसकी विशेषता बताती है। किसी भी कम्पनी को नेगेटिव ROE वाली कंपनियों की समान सेक्टर वाली कंपनियों से तुलना नहीं की जा सकती जिनका ROE पॉजिटिव हैं।
समय के साथ और देश की ईकोनामी (economy) के साथ आर ओ ई मे परिर्वतन आता रहता है। अगर देश की ईकोनामी अच्छी है तो आर ओ ई भी अच्छा होगा और जब ईकोनामी सही नही होगी तो आर ओ ई कम होगा । तो इस प्रकार हम यह कह सकते है कि आर ओ ई केवल एक फाइनेशियल रेशो है जो बदलता रहता है।
ROE को प्रभाति करने वाले कारक
मूल्यह्रास (Depreciation) – जब मुल्यहास होता है तो कम्पनी की नेट इनकम भी कम हो जाती है जिस कारण रिटर्न ऑन इक्विटी घट जाता है जो कि कंपनी का सही ROE नहीं दर्शाता।
वृद्धि दर (growth rate) – कम्पनी की ग्रोथ उसके आर ओ ई को बहुत प्रभावित करती है। कोई कम्पनी जब बहुत जल्दी ग्रोथ करती है तो आर ओ ई कम दिखाया जाता है क्योकी उसे ग्रोथ करने के लिये ज्यादा संसाधन की आवश्यकता होती है।
शेयर का बायबेक (share buyback) – जब कम्पनिया अपने शेयर को बायबेक करती है तो उस कम्पनी के आउटस्टैडिंग शेयर कम हो जाते हे जिससे आर ओ ई बढ जाता है।
पूंजीकरण नीति (capitalization policy)- अगर कंपनी की बुक्स में low मार्केट केपीटलाइजेशन बताया जाता है तो भी ROE कम हो सकता है।
यह भी पढे- ELSS क्या हैं? इसमे कैसे निवेश करे?
म्यूचुअल फंड के मिथक | Myths of Mutual Funds
ट्रेडिंग वॉल्यूम(trading volume) क्या है इसका विश्लेषण (analysis) कैसे किया जाता है