जब भी निवेश की बात आती है तो सबसे सुरक्षित और अच्छे निवेश के लिए म्यूच्यूअल फंड को चुना जाता है। म्यूचुअल फंड में कई सारी स्कीम होती है, जिन्हें जानना बहुत जरूरी है । क्योंकि अलग-अलग स्कीम अलग-अलग रिटर्न देती हैं, और इन स्कीम के अपने कुछ नियम होते हैं ।म्यूच्यूअल फंड स्कीम अपने स्ट्रक्चर के आधार पर और निवेश के आधार पर अलग-अलग बाटी गई है। जो कि इस प्रकार
स्ट्रक्चर के आधार पर म्यूचुअल फंड स्कीम
- ओपन एंडेड फंड (Open ended fund)
- क्लोज एंडेड फंड (Close ended fund)
निवेश के उद्देश्य के आधार पर म्युचुअल फंड स्कीम (Mutual fund scheme based on investment objective)
- ग्रोथ फंड या इक्विटी फंड (Growth fund or equity fund)
- इनकम फंड (Income fund)
- बैलेंस या डायवर्सिफाइड फंड (Balance or diversified fund)
- मनी मार्केट फंड (Money market fund)
- गिल्ट फंड (Gilt fund)
- सेक्टर फंड (Sector fund)
- इंडेक्स फंड(Index fund)
ओपन एंडेड फंड (Open ended fund)
एक ऐसा फंडे जो निरंतर चलता है। जब तक इससे रेगुलेशन के अंतर्गत स्कीम से ना हटा दिया जाए। इस स्कीम में यह सुविधा मिलती है, कि निवेशक किसी भी समय निवेश कर सकता है, और कभी भी अपना पैसा वापस निकाल सकता है। जब यह स्कीम बाजार में लांच होती है, तो इसका NFO बाजार में आता है।
जिसमें निवेश करने के लिए कुछ इनिशियल ऑफर (IPO) पर निर्धारित किया जाता है। यदि निवेशक इसमें निवेश कर देता है तो उसे इनिशियल में पीरियड में कम पैसों में अच्छे यूनिट प्राप्त हो जाते हैं। परंतु यह फंड सूचीबद्ध होने के बाद निवेशक निवेश करता है तो उसे यूनिट की नेट ऐसेट वैल्यू पर निवेश करना होगा । इसलिए ओपन एंडेड स्कीम प्रतिदिन NFV जारी करती है।
इस स्कीम में जब बाजार में मंदी चल रही हो, तब निवेशक अपनी यूनिट बेच देता है । जिससे कि फंड मैनेजर को अपने निवेश से धन निकालना पड़ता है ,और निवेशकों को देना पड़ता है । उसके विपरीत जब मार्केट ऊपर जाता है तब फंड की NAV भी ऊपर जाती है , इसको ऊपर जाता देख निवेशक अधिक मात्रा में यूनिट्स को खरीदते हैं , जिससे कि फंड मैनेजर को अधिक भाव में बाजार में पैसा लगाना पड़ता है।
क्लोज एंडेड फंड (Close ended fund)
यही स्कीम एक निश्चित समय के लिए होती है, जिसका समय फंड स्कीम को जारी करते समय या इनिशियल ऑफर के समय जारी कार दिया जाता है। इस स्कीम में निवेशक केवल उसके इनिशियल ऑफर पीरियड (IPO) या न्यू फंड ऑफर उपलब्ध होते हैं।
तब तक ही निवेश कर सकता है। इसका ऑफर पीरियड खत्म होने के बाद में निवेशक जिसमें निवेश नहीं कर सकता । इसकी अवधि लंबे समय की होती है, जिससे कि फंड मैनेजर को निवेशक के पैसों को लंबे समय के लिए अच्छे तरीके से संचालन करने में आसानी होती है, और वहां अच्छे रिटर्न देते हैं।
ग्रोथ या इक्विटी फंड (Growth or equity fund)
यह फंड सीधे इक्विटी (equity) शेयर बाजार से जुड़ा होता है । जिसमें की अधिक रिस्क होता है ,और इसमें लगाया गया पैसा पूरा इक्विटी शेयर (equity share) में लगाया जाता है। क्योंकि इसमें निवेश किया गया धन शेयर मार्केट में लगाया जाता है। जिससे जी औसत रिटर्न अच्छा मिल जाता है। जिससे निवेशक काफी ज्यादा आकर्षित होते हैं । इसमें पैसा लगाने से पूर्व मार्केट को परखना जरूरी है, क्योंकि उसके यूनिट के प्राइस मार्केट के हिसाब से बदलते रहते हैं।
इनकम फंड (Income fund)
यह म्यूच्यूअल फंड की सभी स्कीम से कम जोखिम वाली होती है। क्योंकि इस प्रकार के फंड में निवेश किया गया पैसा शेयर मार्केट में ना लगाते हुए। यह सरकारी प्रतिभूतियों (securities) और विभिन्न कंपनियों द्वारा जारी किए गए बॉन्ड में लगाया जाता है। जिससे कि रेगुलर इनकम होती रहती है। इस प्रकार के फंड में अन्य फंड के मुकाबले रिटर्न कम मिलता है, परंतु यह सिक्योर होता है।
बैलेंस फंड या डायवर्सिफाइड (Balance fund or diversified)
इस प्रकार के फंड में अलग-अलग शेयर और बोंड सरकारी प्रतिभूतियों (securities) मैं डायवर्सिफाइड (diversified) तरीके से निवेश किया जाता है। जिससे कि जोखिम कम होता है, और फायदा अधिक होता है। इसमें इक्विटी और डेब्ट में कितना निवेश किया गया है यह उसके ऑफर लेटर से जाना जा सकता है । सामान्यता यह फंड 50 से 60% इक्विटी शेयर में और बाकी डेब्ट जैसे कि बांड ,डिवेंचर, और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करता है।
मनी मार्केट फंड (Money market fund)
इस फंड को लिक्विड प्लान (liquid plan) के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यह तब सक्रिय होता है, जब मार्केट में लिक्विडिटी हो और ब्याज दरें बहुत ज्यादा परिवर्तित हो रही हो। तब ये एक्टिव हो जाते हैं और इन फंड में किया गया निवेश कुछ फिक्स इंस्ट्रूमेंट में होता है। जोकि बहुत कम समय के लिए होता है। इसमें निवेश करना शॉर्ट टर्म निवेशक के लिए काफी अच्छा होता है।
गिल्ट फंड (Gilt fund)
इस प्रकार के फंड में किया गया निवेश फंड मैनेजर केवल केंद्र सरकार, राज्य सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियों में या रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत इंस्ट्रूमेंट में ही किया जाता है । इस प्रकार के फंड में जोखिम बिल्कुल नहीं होता है और यह टेक्स्ट से फ्री होता है। जिसमें जब चाहे तब पैसा निकाला जा सकता है। इसका रिटर्न अन्य फंड की तुलना में काफी कम होता है।
सेक्टर फंड (Sector fund)
जैसा कि नाम से ही कि स्पष्ट हो रहा है, उसी प्रकार इस फंड में किया गया निवेश किसी सेक्टर विशेष की कंपनियों में किया जाता है। जोकि काफी ज्यादा जोखिम पूर्ण होता है, और सेक्टर की मंदी के दौरान फंड घाटे में जा सकता है। क्योंकि यह ग्रोथ फंड की तरह डायवर्सिफाई (diversify) नहीं होता है। इस प्रकार के फंड मैनेजर कुछ विशेष सेक्टर जो कि वर्तमान में अपने चरम पर (at the peak) होते हैं। या आने वाले कुछ समय में काफी अच्छा परफॉर्म करने वाले होते हैं ,उन सेक्टर में निवेश करके मुनाफा काफी ज्यादा देते हैं।
इंडेक्स फंड(Index fund)
इस प्रकार के फंड किसी विशेष कंपनी या सेक्टर में निवेश नहीं करते हैं। यह फंड सीधे-सीधे इंडेक्स जैसे कि बी.एस.सी. , एन.एस.सी. में निवेश करते हैं । क्योंकि इन इंडेक्स में टॉप 30 या 50 कंपनियां शामिल होती है, जिससे कि जोखिम कम होता है। और काफी अच्छा रिटर्न मिल जाता है।
यह भी पढे- SIP क्या है? इसके फायदे
टॉप 10 बेस्ट म्यूचुअल फंड (Top 10 best mutual funds)
म्यूचुअल फंड और इसके फायदे (Mutual Fund and its benefits)