शेयर मार्केट में शेयर की खरीदी एवं बिक्री से उत्पन्न गतिविधियां, डिमांड और सप्लाई के नियम पर काम करती है । शेयर मार्केट में होने वाले इन उतार-चढ़ाव के बीच सपोर्ट और रजिस्टेंस (Support and resistance) लेवल ऐसे मोड़ हैं जहां पर डिमांड और सप्लाई की पावर एक साथ मिलती है । निवेशक सपोर्ट और रेजिस्टेंस (Support and resistance) को काफी ज्यादा अहमियत देते हैं । क्योंकि जब टेक्निकल एनालिसिस (Technical analysis) में चार्ट या ग्राफ सपोर्ट या रेजिस्टेंस को टच करते हैं तो एक नया ट्रेंड शुरू होता है।
सपोर्ट लेवल (Support Level)
जब किसी शेयर की कीमत गिरने लगती है और इसके खरीदार बढ़ जाते हैं और बेचने वालों की कमी हो जाती है। क्योंकि खरीदार घटती कीमतों में भविष्य में लाभ कमाने के लिए शेयर को खरीदते हैं । सेलर होता है वह कम दाम पर शेयर को नहीं बेचना चाहता इस प्रकार शेयर की घटती कीमतों में एक ऐसी स्थिति पैदा होती है जब बाजार में शेयर की डिमांड बढ़ जाती है और सप्लाई कम हो जाती है। यह स्थिति उस शेयर की कीमतों में आने वाली गिरावट को रोकती है शेयर की उस कीमत को इसका सपोर्ट लेवल(Support Level) कहा जाता है ।
रेजिस्टेंस (resistance)
जब बाजार ऊपर जाता हुआ दिखाई देता है और शेयर की कीमत बढ़ने लगती है । क्योंकि उसकी मांग अधिक हो जाती है शेयर की इस बढ़ती हुई कीमतों में एक स्तर आता है जब वह शेयर एक निश्चित कीमत से ज्यादा नहीं बढ़ता है । और निवेशक इस स्तर पर अपने शेयर को बेचकर मुनाफा कमाकर बाजार से बाहर निकलना चाहता है।
जिससे निवेश करने वाले लोगों की संख्या घट जाती है यह स्थिति शेयर की कीमत को और ज्यादा बढ़ने से रोकती है । इस लेवल को शेयर का रजिस्टेंस लेवल (resistance Level) कहा जाता है । यदि बाजार में कोई खबर इस शेयर की कीमत को और अधिक बढ़ाना चाहे तो भी इसकी कीमत नहीं बडती है। क्योंकि ऊंचे दामों पर शेयर की खरीदी कोई नहीं करना चाहता जिससे उसकी मांग घट जाती है।
ऑस्किलेटर (Oscillator) क्या है
टेक्निकल एनालिसिस (Technical analysis) का यह एक महत्वपूर्ण पहलु है। इसके अध्ययन से किसी प्रकार का ट्रेन्ड, पेर्टन या बुल, बेयर (Bull, bear) फेस का पता नहीं चलता । इससे केवल ओवरबाॅट (अत्यधिक खरीदी)या ओवरसेल (Over sale) अत्यधिक बिक्री की स्थिति का पता लगाया जाता है । ऑस्किलेटर (Oscillator) का उपयोग संस्थागत खरीदी और बिक्री पर भी लागू किया जाता है ।
इससे नए ट्रेडिंग नियम भी बनाए जा सकते हैं ऑस्किलेटर (Oscillator) के उपयोग से निर्णय लेने में काफी आसानी होती है । ऑस्किलेटर (Oscillator) का उपयोग अन्य विश्लेषण के साथ में किया जाना चाहिए और निर्णय लेना चाहिए । इसका उपयोग कम समय के लिए निवेश करने वालों के लिए अच्छा हो सकता है।
ऑस्किलेटर (Oscillator) के प्रकार
1-कन्वर्जेंस डायवर्जेंस मूविंग एवरेज (Convergence divergence moving average) –
यह किसी शेयर के 12 दिन और 26 दिन के एक्स्पोनेंशियल मूविंग एवरेज (Exponential moving average) का अंतर होता है । इसको बनाने में मुख्य बात इसके दिनों की अवधि का होता है। यदि यह अंतर 0 से अधिक होता है तब शेयर की स्थिति ओवर बाॅट दर्शाई जाती है। और इस प्रकार के शेयर को बेचना चाहिए । इसके विपरीत यदि यह अंतर 0 से कम होता है तो ओवर सेल की स्थिति बनती है इसमें निवेशकों को खरीदने का सोचना चाहिए ।
2- प्राइस रेट ऑफ चेंज ऑस्किलेटर (Price rate of change oscillator) –
इसमें शेयर की वर्तमान बाजार मूल्य की तुलना पूर्व के किसी एक दिन के बाजार मूल्य से की जाती है । इसके अनुमान की सफलता पूर्व के सही दिन के चयन में निहित है। यदि दो बाजार मूल्य का अंतर पूर्व से कम हो तो यह शेयर की ओवरसेल स्थिति को दिखाता है । जिससे निवेशक खरीदी करने का निर्णय ले सकते हैं । इसके विपरीत यदि बाजार मूल्यों का अंतर 0 से अधिक है तो ओवर बाॅट (overbought) की स्थिति दर्शाता और इसमें निवेश बिक्री करते हैं ।
3- रिलेटिव स्ट्रैंथ इंडेक्स ऑस्किलेटर( Relative Strength Index Oscillator)-
इसके माध्यम से पिछले समय के परफारमेंश का अध्ययन किया जाता है । इस समय मे आये उतार चढाव की संख्या निकाली जाती है। इन संख्याओ का अन्तर 0 से 100 के मध्य गति करता है। यदि किसी शेयर की संख्या 70 से अधिक होती है तो यह उसकी ओवर बाॅट (overbought) स्थिति दर्शाता है। यदि यह संख्या 30 से निचे होती है तो यह शेयर ओवर शेल (oversell) होता है। शेयर को खरिदने और बेचने का निर्णय इस आधार पर लिया जा सकता है।
4-स्टोकेस्टिक ऑसिलेटर (Stochastic oscillator)–
इस आसिलेटर के अन्तर्गत किसी शेयर की पिछले परफारमेश (performance) की अवधि का चयन किया जाता है। यहा अवधि विशेष का चयन महत्वपूर्ण है। इस अवधि के दोरान उस शेयर का उच्चतम तथा न्यूनतम बााजार मूल्य निकाला जाता है। इसे ए (A) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
फिर इस अवधि के दोरान उस शेयर की डे क्लोजिंग (day closing) और उसका न्यूनतम मूल्य अन्तर निकाला जाता है। इसे बी (B) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। ए तथ बी के अनुपात को प्रतिशत मे व्यक्त करने पर यह 0 से 100 तक आ सकती है। यदि संख्या 80 से उपर आती है तो शेयर बेचना चाहीये और यदि यह 20 से कम आये तो शेयर खरिदना चाहीये।
5- वॉल्यूम ऑसिलेटर (Volume oscillator) –
इस आसिलेटर मे शेयर के किसी विशेष अवधि के दोरान शेयर के ट्रेडिंग वाॅल्यूम (trading volume) का मूविंग ऐवरेज निकाला जाता है। यह अवधि कम समय की होती है। इस मूविंग एवरेज की तुलना वर्तमान वर्तमान अवधि से कि जाती है। और दोनो का अन्तर निकाला जाता है। यदि यह अन्तर किमत मे गिरावट के साथ बढता हुआ दिखाई दे या अन्तर बढती कीमतो के साथ कम होता दिखाई दे तो यह बियरिश फेज का संकेत देता है। इसके वितपरित बुलिश फेज (bullish phase) का संकेत देती है।
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