शेयर बाजार में कंपनी के शेयरों की कीमत को प्रभावित करने वाले कई सारे कारक होते हैं जिन्हें जानना एवं समझना बहुत ज्यादा जरूरी होता है । ताकि जिससे निवेशक अपना अमूल्य धन सोच समझकर उन शेयरों पर लगा सके जो बाद में अच्छे returns प्रदान करें । शेयर मार्केट में कुछ महत्वपूर्ण कारक शेयर की कीमत को प्रभावित करते हैं जिनके बारे में हम विस्तार से आगे जानेंगे ।
मांग एवं आपूर्ति (Demand and supply)
डिमांड एंड सप्लाई (demand and supply) का नियम सभी जगह लागू होता है । इसी प्रकार शेयर मार्केट में भी यह नियम काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है जिस प्रकार शेयर बाजार में शेरों की डिमांड बढ़ती है वैसे वैसे उन शेयरों की कीमतें भी बढ़ती है। जिन शेयरों की डिमांड कम होती है उन शेयरों की कीमत गिर जाती है।
कई बार इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (Institutional Investor) या फॉरेन इन्वेस्टर्स (foreign investors) काफी ज्यादा मात्रा में शेयरों की खरीदी करते हैं जिससे कि उन शेयरों की डिमांड बढ़ जाती है और उनकी कीमत ऊपर चढ़ने लगती है । कई बार इक्विटी (equity) शेयर का बड़ा हिस्सा कंपनी के प्रमोटर्स के पास में होता है ऐसी स्थिति में जब मार्केट में शेयर की डिमांड बढ़ जाती है तो उनकी खरीद-फरोख्त के लिए शेयर उपलब्ध नहीं होते हैं ।
जिससे कि उन Share की कीमत काफी ज्यादा बढ़ जाती है । इसी प्रकार जब किसी कंपनी के पब्लिक इश्यू (public issue) मार्केट में जारी किए जाते हैं तो उन शेयर की कीमत कम हो जाती है । क्योंकि नए पब्लिक इश्यू (public issue) के कारण बाजार में शेयरों की संख्या बढ़ जाती है अर्थात आपूर्ति बढ़ जाती है और माग बढ़ जाती है ।
संस्थागत रुचि (Institutional interest)
शेयरों की कीमत छोटे अंतराल के दौरान होने वाले उतार चढ़ाव का एक कारण संस्थागत रुचि है । क्योंकि कई सारे इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (Institutional Investors) कुछ बड़ी कंपनियों में या कुछ छोटी ग्रोथ कंपनियों में काफी ज्यादा रुचि रखते हैं । जिससे कि उन शेयरों के साथ स्टॉक काफी ज्यादा मात्रा में खरीद लेते हैं और बाजार में उन शेयरों का ट्रेंड बदलने लगता है ।
कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि कई बार संस्थागत निवेश केवल मार्केट में भ्रम (misconception) पैदा करने के लिए शेयर की कीमतों को घटाता या बढ़ाता है। जिससे कि उन्हें फायदा हो सके और वह बाजार से अच्छा धन निकाल सके ।
इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर (Institutional Investors) शेयर को ज्यादा समय तक प्रभावित नहीं करता यह केवल कुछ समय तक उतार चढ़ाव कर सकता है । इन सब तरीकों से छोटे निवेशक या जो रणनीति अपनाकर निवेश करते हैं उनके लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि उनके शेयरों की कीमत काफी ज्यादा फ्लकचुएट होती है ।
कंपनी का परफॉर्मेंस (Company performance)
कंपनी का वित्तीय तथा गैर वित्तीय परफॉर्मेंस उस कंपनी के शेयरों की कीमतों को काफी हद तक नियंत्रित करता है । क्योंकि कंपनी अच्छा परफॉर्म करती है तो शेयरों की कीमत अच्छी होती है और यदि कंपनी काफी बुरे हालातों से गुजर रही है । तो उसकी कीमत काफी कम हो सकती है जो कंपनियां अच्छा परफॉर्म करती है.
उन कंपनियों के शेयर में निवेशक ज्यादा रूचि लेते हैं क्योंकि उन्हें अच्छा डिविडेंड (dividend) और अच्छा रिटर्न पाने की आशा होती है। जिससे कि कंपनी के शेयर काफी अच्छे दामों पर मार्केट में होते हैं । इसी प्रकार जब कंपनी का वित्तीय प्रदर्शन कंपनी के लिक्विडिटी (liquidity) , कंपनी की आय , कंपनी की देनदारियों ,कंपनी के उधार , कंपनी की वसूली आदि अच्छा हो तो निवेशक इसका निष्कर्ष अच्छा निकालते हैं और इनके शेयर मजबूती के साथ बाजार में वृद्धि करते हैं ।
कंपनी का विस्तार (Company expansion)
शेयरों की कीमत में कंपनी का विस्तार काफी महत्वपूर्ण होता है । कंपनी अपना क्षेत्र अपने प्रोडक्ट और अपने ह्यूमन रिसोर्स (Human Resource) में जैसे-जैसे विस्तार करती है और जैसे-जैसे अपने क्षेत्र को बढ़ाती है वैसे वैसे उस कंपनी के शेयरों की कीमत बढ़ती है । और इसे ग्रोथ स्टॉक की नजर से देखा जाता है जिसमें की काफी ज्यादा निवेशक रुचि लेते हैं और इन शेरों की कीमत बढ़ जाती है ।
कंपनी का विलय या डी मर्जर (Merger of company)
एक कंपनी जब दूसरी कंपनी के साथ में विलय होती है और गैर वित्तीय स्थितियों में परिवर्तन होता है । जिससे कि बाजार में इन शेयरों की कीमत काफी ज्यादा घटा या बढ़ जाती हैं । किसी कंपनी के विलय होने से उस कंपनी के मार्जिन (margin) और वैल्यूएशन (Valuation) में काफी ज्यादा परिवर्तन आता है । जिससे कि उस कंपनी के शेयर प्रभावित होते हैं आजकल बहुत सी छोटी कंपनियां बड़ी कंपनियों में विलय हो रही हैं जिसके चलते बाजार में छोटी कंपनियों के शेयर भी काफी ज्यादा ऊंचे दामों पर उपलब्ध है ।
औद्योगिक कारक (Industrial factor)
- उद्योग के विकास की स्थिति (Development of the industry)
- वसूली (Recovery)
- प्रतिस्पर्धा (Competition)
- ग्लोबल फैक्टर (Global factor)
- स्थानी रेगुलेशन (Local regulation)
- टैक्सेशन(taxation)
उद्योग के विकास की स्थिति स्टेज आफ ग्रोथ (Development of the industry)
हर एक कंपनी किसी ना किसी प्रकार के सेक्टर से जुड़ी होती है और वह सेक्टर उसके शुरुआती दौर में काफी ज्यादा ग्रोथ करता है । और उससे जुड़ी सभी कंपनियां भी ग्रोथ करती है जिस सेक्टर में जिस प्रकार का दौर होता है उस प्रकार कंपनियों के शेयर परफॉर्म (perform) करते हैं ।
यदि सेक्टर में मंदी का दौर है तो शेयर भी उसी प्रकार से व्यवहार करेंगे कोई भी सेक्टर अपने प्रारंभिक दौर में काफी ज्यादा ग्रोथ करने की संभावना लिए होता है । और इससे जुड़ी कंपनियां उनके शेर भी काफी ग्रोथ करने की संभावना में होते हैं इसी प्रकार कई सेक्टर ऐसे हैं जो आज अपने अंतिम चरण में हैं जिस से जुड़ी कंपनियां भी माली हालत में हैं।
वसूली Realization (Recovery )
किसी कंपनी में अपने व्यापार से जुड़ी वसूली की स्थिति काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है उस कंपनी में लिक्विडिटी (liquidity) और उसके सिस्टम में कैश फ्लो जैसी चीजें काफी ज्यादा मायने रखती है। यदि उस कंपनी की वसूली प्रक्रिया सही नहीं है तो वह कंपनी कभी भी घाटे में जा सकती है । और जिस कंपनी की वसूली प्रक्रिया काफी अच्छी हैं और जिसकी वसूली जल्दी हो जाती है तो उस कंपनी की लिक्विडिटी (liquidity) और उसमें कैशफ्लो बना रहता है जिससे कि उस कंपनी के शेरों की ग्रोथ अच्छी होती है ।
प्रतिस्पर्धा (competition )
किसी कंपनी या सेक्टर में कितना कंपटीशन है यह भी उस कंपनी के शेयरों को काफी ज्यादा प्रभावित करता है । कंपनी की प्रतिस्पर्धा विश्लेषण इस दृष्टिकोण से किया जाता है कि कंपनी का प्रदर्शन किस प्रकार से है और उसकी प्रतिस्पर्धी कंपनी किस प्रकार प्रदर्शन कर रही है।
जिससे कि निवेशक ज्यादा प्रतिस्पर्धा वाली कंपनी में अर्थात यूं कहें कि जो कंपनी सभी को Compete कर रही है उस कंपनी के शेयरों को लेना ज्यादा पसंद करते हैं जिससे कि छोटी कंपनी के शेयरों की कीमत कम होती है और बड़ी प्रतिस्पर्धी कंपनी के शेयरों की कीमत अधिक होती है ।
वैश्विक कारक (Global factors)
आजकल वैश्वीकरण के दौर में शेयर बाजार भी अछूता नहीं रह गया है । क्योंकि जो कंपनियां ग्लोबल मार्केट में डील करती हैं और उन कंपनियों पर वैश्विक कारक बहुत ज्यादा असर करते हैं । शेयर बाजार के ऑनलाइन होने के कारण बहुत से ऐसे निवेशक होते हैं, जो विदेशों से निवेश करते हैं . वैशेषिक कारक में इंपोर्ट एक्सपोर्ट और शासन की कई सारे रूल्स रेगुलेशन भी शेयर को प्रभावित करते हैं।
लोकल रेगुलेशन (Local regulation)
कंपनियों को स्थानीय सरकार द्वारा लागू किए गए नियमों का पालन करना पड़ता है । जिससे कि कंपनी के कई ऐसे कारक होते हैं जिनका विकास करना थोड़ा कठिन होता है इन स्थानीय नियमों के कारण कंपनियों को अधिक खर्च करना पड़ता है जिससे कि कंपनी के शेयरों की कीमत में काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है ।
टैक्सेशन (Taxation)
सरकार द्वारा कंपनी द्वारा निर्मित किए जा रहे प्रोडक्ट और उनके कच्चे माल के ऊपर सरकार द्वारा अलग-अलग टैक्स वसूले जाते हैं । जिससे कि कंपनी के शेयरों की कीमतों पर प्रभाव पड़ता है जिन कंपनियों को टैक्स में छूट मिलती है उन कंपनियों की ग्रोथ ज्यादा अच्छी होती है और जिन कंपनियों के टैक्स में छूट नहीं दी जाती वह कंपनियां थोड़ा कम ग्रोथ कर पाती है।