शेयर बाजार देश की अर्थव्यवस्था (Economy) का परिचय देता है। शेयर बाजार अर्थव्यवस्था (Economy) पर काफी ज्यादा प्रभाव डालता है। क्योकि देश की सभी कम्पनीयां जो देश दुनिया के लिये उत्पादन करती है और जरुरतो की पूर्ती करती है। वे सभी शेयर बाजार मे लिस्टेड (Listed) होती है।
यदि शेयर बाजार का हाल अच्छा है तो इसका मतलब देश की अर्थव्यवस्था (Economy) भी अच्छी चल रही है। वही यदि शेयर बाजार मे मंदी का दोर चल रहा है तो देश की अर्थव्यवस्था (Economy) भी डामाडोल है। रिर्जव बैंक जब ब्याज मे कमी या वृद्धि करती है तो इसका सिधा असर शेयर बाजार पर पडता है।
जब ब्याज (Interest) बडाया जाता है तब शेयर मार्केट गिर जाता है और जब ब्याज दर (Rate of interest)घटाइ जाती है तो शेयर मार्केट मे उछाल आता है। सरकार विकास दर को आगे ले जाने के लिये लगातार प्रयास करती है।
विकास दर कई सारे तत्व पर निर्भर करती है। जैसे की सकल राष्ट्रीय उत्पाद, सकल घरेलु उत्पाद (GDP),मुद्रास्फीति, माॅनीटरी पाॅलिसी आदि। ये सभी यदि सकारात्म या नकारात्मक होते है तो इसका प्रभाव हमे शेयर बाजार पर दिखाई देता है। निवेशको को निवेश करने से पहले इन सभी घटक के बारे मे जानना जरुरी है।
इकोनॉमिक ग्रोथ (Economic growth)
शेयर मार्केट निवशको को हमेशा सलाह दी जाती है कि जब भी वे निवेश करे इकोनाॅमिक ग्रोथ (economic growth) को जरुर देखे। सभी देश की सरकार अपने देश की आर्थिक नीतियों (economic policies) को देसवासियो के जिवन स्तर को सुधारने और आर्थिक विकास के लिये बनाती है।
इकोनाॅमिक ग्रोथ (economic growth) की गणना विभिन्न समय मे भिन्न भिन्न घटक के आधार पर की जाती है। जिसमें विभिन्न सेवा, उत्पाद, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदी। जो कि सिधे शेयर बाजर से जुडे होते है।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross national product)
इसकी गणना उसके कुल उत्पाद (total product) के मुल्य या उसके निर्माण की कुल लागत (total cost) से की जाती है। इस प्रकार सकल राष्ट्रिय उत्पाद (GNP) की गणना दो प्रकार से की जा सकती है। जी.एन.पी (GNP) की गणना मे राष्ट्र की कुल खपत,कुलनिवेश, सरकारी खरीद, सेवाओं तथा निर्यात मुल्य (export price) से आका जाता है।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद के आंकडो का उपयोग बडे उद्योगो द्वारा किये गये उत्पादन एवं उनकी आय को अभिव्यक्त करने और उनके बिच फंक्शनल ट्रंजेक्शन (functional transaction) को व्यक्त करने मे होता है।
सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product)
किसी क्षेत्र मे पुरे वर्ष मे पेदा किए गये सभी अंतिम उत्पाद (final product) तथा सेवाओ की रुपये की मुद्रा में अभिव्यक्ति (expression in currency) उस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद(GDP) कहलाता है। देश की सभी इकाइयो के उत्पाद को जोडकर कुल सकल घरेलू उत्पाद निकाला जाता है।
नेट नेशनल प्रोडक्ट (Net national product)
ग्रास नेशनल प्रोडक्ट राष्ट्रिय खपत घटाने पर नेट नेशनल प्राडक्ट का आंकडा प्राप्त होता है। किसी देश के विकास को आंकने का यह ज्यादा विश्वसनीय आंकडा है।
प्रति व्यक्ति आय(Per capita income)
देश की सकल घरेलू आय (gross domestic income) को देश की जनसंख्या से विभाजित करने पर जो आकडा प्राप्त होता है। वह उस देश की प्रति व्यक्ति आय (per capita income) होती है। यह आय जनता के जिनव स्तर के सुधार का प्रतिक है। यदि देश की प्रति व्यक्ति आय अच्छी है तो देश की जनता अच्छी स्थिति मे है।
यदि ग्रास नेशनल प्राडक्ट (grass national product) के आंकडे, नेट नेशनल प्राडक्ट (net national product) के आकडो मे वृ़द्ध के साथ प्रति व्यक्ति आय मे भी वृद्धि होती है तो वहां की जनता का जीवन स्तर (life standard) काफी अच्छा होता है।
मुद्रा स्फीति (Inflation)
जब व्यक्ति द्धारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओ और सेवाओ की कीमत मे स्थई वृद्धि होती है तो इसे मुद्रा स्फीति (inflation) कहते है। इसे मंहगाई भी कहा जाता है। किसी एक वस्तु या सेवा की किमत मे वृद्धी को मुद्रा स्फीति नही कहा जाता, एक आदर्श अर्थव्यवस्था (ideal economy) मे डिमांड और सप्लाई निरन्तर सुचारु रुप से चलती रहती है तो इस प्रकार की स्थिति पैदा नही होती है। पंरतु यह सम्भव नही है।
मौद्रिक नीति (Monetary policy)
सरकार प्रति वर्ष ऐसी निती तैयार करती है जिससे की मुद्रास्फीति (inflation) को घटाया जा सके, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मे वृद्धि, आर्थिक और वित्तिय स्थिति मे सुधार लाना है। जिसे की मौद्रिक नीति (Monetary policy) के नाम से जाना जाता है। केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक (reserve Bank) की मदद से यह निती लागु करती है|
वित्तीय नीतियां (Financial policies)
इस निती मे सरकार अपने खर्च तथा कर अर्जित करने के लिये निती (policies) बनाती है। जहां बाजार व्यवस्था की अहम भुमिका होती है। यह उत्पादन बडाने के लिये, कमजोर लोगो को सहारा देने के लिये, और लिक्विडीटी (liquidity) को बनाये रखने के लिये यह निती बनायी जाती है।
क्रेडिट पॉलिसी (Credit policy)
रिजर्व बैंक (reserve Bank) सभी बैंको के लिए नियम बानाता है और यदि नकदी (cash) की कमी होती है तो वह इन्है नकदी (cash) भी मुहेया कराता है। तथा बैंको के लेन देन पर नजर भी रखता है। मोद्रिक निती (Monetary policy) के तहत इस निती को क्रेडिट पालिसी (credit policy) कहा जाता है। इस पाॅलिसी की घोषणा साल मे दो बार होती है April और अक्टुबर । इस बिच रिजर्व बैंक (reserve bank) कोई भी फेसला ले सकती है।
रेपो रेट (Repo rate)
बैंको को देनिक काम काज (daily chores) के लिये बडी रकम की जरुरत होती हे जिसकी समय अवधी एक दिन से ज्यादा नही होती है। इसके लिये बैक ओवरनाईट कर्ज (overnight debt) लेजी है जिसके लिये उसे रिजर्व बैंक को ब्याज देना पडता है जिसे रेपो रेट (repo rate) कहा जाता है।
रिवर्स रेपो रेट (Reverse repo rate)
रेपो रेट के विपरीत रिवर्स रेपो रेट (Reverse repo rate) है । बैंको के पास जो रकम दिन भर के काम काज के बाद शेष बची होती है वह पैसा बैंक रिजर्व बैंक के पास रख सकती है। अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार मे ज्यादा नगदी है तो वह रिवर्स रेपो रेट को बढा देता है जिससे की बाजार की नगदी (cash) रिजर्व बैंक के पास आ जाती है।
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