शेयर के तकनीकी विश्लेषण में उससे जुड़े सेक्टर व निश्चित समयावधि के उतार चढ़ाव और शेयरों के ट्रेडिंग वॉल्यूम और उसमें होने वाले बदलाव निश्चित समयावधि में उनके चार्ट और उनके ग्रोथ और ट्रेंड से तकनीकी विश्लेषण किए जाते हैं । तकनीकी विश्लेषण शेयर के शार्ट टर्म या लॉन्ग टर्म (Short term or long term) अवधि में होने वाले परिवर्तन उसके उस ग्राफ को देखकर लगाए जाते हैं जो उस कंपनी के शेयर के निश्चित समय अवधि के , वॉल्यूम, ट्रेंड, मांग और आपूर्ति के आधार पर बनाए जाते हैं।
जहां एक और फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी के बेसिक और मूलभूत चीजों को देखकर उसके शेयर की कीमत के अनुमान लगाया जाते हैं । वही इसके विपरीत टेक्निकल एनालिसिस (technical analysis) में बाजार का अध्ययन किया जाता है।
तकनीकी विश्लेषकों का मानना है कि शेयर एक निश्चित ट्रेंड या पैटर्न को फॉलो करते हैं जोकि समय-समय पर परिवर्तित होते रहते हैं । और उसी पैटर्न में काम करते हैं कोई भी ट्रेंड तब तक फॉलो होता है जब तक उस पर बाहरी कारक प्रभाव ना डालें ।
किसी भी ट्रेंड या पैटर्न के दौरान और शेयर की डिमांड एवं सप्लाई नियम पर आधारित होती हैतकनीकी विश्लेषण करने वालों के लिए शेयर के ट्रेंड को पहचानना और उन में होने वाले बदलाव को पूर्वानुमान लगाना काफी ज्यादा जरूरी होता है।
तकनीकी विश्लेषण की बारीकियां (The nuances of technical analysis)
निवेशकों को अधिकतर सलाह दी जाती है कि उन्हें बाजार में सही समय की पहचान पर ध्यान देने के बजाय एक निश्चित अवधि तक क्रमिक निवेश करना चाहिए और यह सलाह सही भी है । परंतु बाजार के सही समय की पहचान करने में अक्सर पुराने लोग भी मात खा जाते हैं ऐसा नहीं है कि दिग्गज खिलाड़ियों को बाजार की अनिश्चितता का पता नहीं होता है।
उसके बावजूद भी अधिक धन कमाने का लालच इनको बाजार की अनिश्चितता में डुबो देता है। प्रत्येक निवेशक बाजार से अधिक धन कमाना चाहता है और उसकी इच्छा बाजार की गतिविधियों और उसकी चंचलता को ध्यान में रखकर तकनीकी विश्लेषण की शुरुआत हुई।
तकनीकी विश्लेषण का उद्देश्य विभिन्न निवेशकों की टाइमिंग तथा कीमतों में अपेक्षित परिवर्तन का अनुमान लगाना है। तकनीकी विश्लेषण का पूरा फोकस शेयर की कीमत उनके ट्रेडिंग वॉल्यूम पर रहता है पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए शेयर के बदलाव उनके उतार-चढ़ाव उनसे जुड़े ट्रेडिंग वॉल्यूम के विश्लेषण करके विभिन्न प्रकार के चार्ट ग्राफ मूविंग एवरेज ट्रेंड आदि टूल बनाए जाते हैं । उनका उपयोग आगामी लघु काल, मध्यकाल, और दीर्घकालिक अवधि के दौरान शेयर के अनुमान लगाने के लिए किया जाता है।
तकनीकी विश्लेषण के क्षेत्र में चार्ल्स डाउ द्वारा दिया गया सिद्धांत सर्वाधिक प्रचलित है इस सिद्धांत के तहत बाजार में प्राइमरी या बड़े परिवर्तनों को पहचानने की कोशिश की जाती है शेयर बाजार में होने वाली मूवमेंट को तीन प्रकार से समझा जा सकता है
- प्राइमरी तथा लंबी अवधि की गति ,जो कुछ महीनों से लेकर कई वर्षों तक बनी रहती है ।
- सेकेंडरी अथवा मध्य गति जो कि कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक बनी रहती है ।
- अल्पकालिक गति या दैनिक गति जोकि कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह तक बनी रहती है ।
चार्ट का विश्लेषण (Chart analysis)
बीते कुछ दिनों मैं शेयर की कीमत उसके ट्रेंडिंग वॉल्यूम को प्रतिदिन के आधार पर दर्शाने के लिए चार्ट बनाया जाते हैं । और यह चार्ट आज काफी ज्यादा प्रचलित है। चार्ट में लाइन चार्ट बार चार्ट कैंडलेस्टिक चार्ट आदि प्रमुख है जो विभिन्न ट्रेंडिंग वॉल्यूम और कुछ दिनों के अंतराल के हिसाब से बनाए जाते हैं । जो कि लगभग सभी एक जैसी सूचनाएं देते हैं।
इन चार्ट के द्वारा शेयर के ट्रेंड और उनके पैटर्न स्कोर जानने की कोशिश की जाती है और यह अनुमान लगाए जाते हैं कि यह ट्रेंड किस समय से बना है और किस समय तक चलेगा और इस ट्रेंड में कब परिवर्तन आ सकता है इसके आधार पर निवेशक अपना निवेश करते हैं।
अपवर्ड ट्रेंड (Upward trend)
इस ट्रेंड में किसी शेयर की कीमत निरंतर बढ़ती है इस प्रकार के शेयरों में शॉर्ट टर्म (short term) निवेशक शेयर को खरीद कर बाद में अच्छे दामों पर बेचकर लाभ कमाते हैं । इससे यह पता लगाया जाता है की शेयर का ट्रेडिंग वॉल्यूम और शेयरों की कीमत लगातार बढ़ रही है । और निवेशक इसमें काफी ज्यादा निवेश कर रहे हैं । परंतु यदि शेयर की कीमत में वृद्धि हो रही हो और उसके ट्रेंडिंग वॉल्यूम में अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं हो रही हो तो उस शहर में सट्टा बाजारी हो रही है।
डाउनवर्ड ट्रेंड (Downward trend)
जब ग्राफ्ट या चार्ट नीचे जाने लगते हैं , शेयरों की कीमत में गिरावट दर्ज होती है। तो इसे डाउनवार्ड ट्रेंड (Downward trend) कहते हैं । कई निवेशक डाउनवार्ड ट्रेंड में खरीदारी कर अच्छे दाम आने पर या अपवर्ड ट्रेंड होने पर शेयर बेचकर लाभ कमाते हैं । यहां भी ट्रेंड को पहचानना और उसकी टाइमिंग महत्वपूर्ण है क्योंकि डाउनवार्ड ट्रेंड में खरीदे गए शेयर काफी कम कीमत पर मिल जाते हैं । और भविष्य में अच्छा लाभ देते हैं।
साइडवेज ट्रेंड (Sideways trend)
जब ग्राफ या चार्ट का ट्रेंड छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव के साथ एक जैसा दिखाई देता है। तो ऐसे ट्रेंड को Sideways trend कहा जाता है । Sideways trend के दौर में शेयरों की गति में कुछ खास मोमेंट नहीं होता है । यह यह कुछ ऊपर कुछ नीचे होता रहता है और इस दौरान इसका ट्रेंडिंग वॉल्यूम बहुत कम होता है।
ट्रेंडिंग वॉल्यूम (Trending volume)
ट्रेंडिंग वॉल्यूम का मतलब एक निश्चित समय में बाजार से खरीदे या बेचे गए शेयरों की संख्या होती है जिससे कि ट्रेंडिंग वॉल्यूम कहा जाता है।तकनीकी विश्लेषण में ट्रेंडिंग वॉल्यूम (trending volume) का बहुत महत्वपूर्ण रोल है। इससे मार्केट में एक्टिव निवेशक और बड़े निवेशकों की उपस्थिति ,अनुपस्थिति का पता चलता है। विश्लेषक ट्रेंडिंग वॉल्यूम को देखकर share के रुझान का पता लगाते हैं।
मूविंग एवरेज (Moving average)
मूविंग एवरेज पिछले कुछ दिनों की कीमतों का एवरेज होता है। जोकि उस शेयरों का मूविंग एवरेज कहलाता है यह अवधि 15 दिन 10 दिन 30 दिन 60 दिन 90 दिन या अन्य हो सकती है । इसमें उस शेयरों की प्रतिदिन की क्लोजिंग प्राइस को कैलकुलेशन के लिए लिया जाता है ।क्योंकि बाजार में शेयरों की कीमत प्रतिदिन बदलती रहती है जिससे कि मूविंग एवरेज भी बदलता रहता है।
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ट्रेंडिंग वॉल्यूम (Trending volume)