फ्यूचर ट्रेडिंग शेयर मार्केट मे ट्रेडिंग का एक महत्वपूर्ण तरिका है। फ्यूचर ट्रेडिंग का तरिका कई सेग्मेंट मे उपयोग किया जा सकता है। फ्यूचर ट्रेडिंग की लिगल अनुमति सबसे पहले डोज्मि राइस एक्सचेंज ने दी थी। आज लगभग हर एक्सचेंज फ्यूचर ट्रेडिंग का आप्शन देते है। आइये जानते है फ्यूचर ट्रेडिंग के सभी पहलुओं को जिससे की आप भी इसका लाभ उठा सके और फ्यूचर ट्रेडिंग अच्छे से कर सके।
फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है ?
फ्यूचर ट्रेडिंग डेरीटिव ट्रेडिंग का एक प्रकार है फ्यूचर ट्रेडिंग मे भविष्य मे एक पूर्व निर्धारित समय और मूल्य पर एक डेरीवेटिव खरिदने या बेचचचने के लिये कानूनी समझौता होता है। फ्यूचर ट्रेडिंग मे खरीदार और बेचने वाला दोनो पक्षो का दायित्व होता है कि वह निर्धारित समय पर निर्धारित मूल्य और वस्तु एक दुसरे को सोंप दे जिससे की कांट्रेक्ट पुरा हो सके।
फ्यूचर ट्रेडिंग मे पहले से तय मुल्य को फ्यूचर प्राईस और पहले से तय समय को डिलीवरी डेट कहा जाता है। इसमे किसी प्रकार का कोई न्यूनतम अकांउट साईट नही होता है। यदि आप फ्यूचर ट्रेडिंग मे रुची रखते है तो आप इसे कम से कम पैसो मे शुरु कर सकते है।
फ्यूचर ट्रेडिंग की विशेषताएँ
फ्यूचर ट्रेडिंग की अपने आप मे कई सारी खुबिया है जिसके कारण फ्यूचर ट्रेडिंग आज बहुत ज्यादा लोकप्रिय है। आइये जानते है फ्यूचर ट्रेडिंग की कुछ विशेषताओं को जो निम्नलिखित है.
- फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत उसके एसेट्स पर निर्भर करती है यदि एसेट्स की किमत मे बढोतरी होती है तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत भी बढ जाती है।
- फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को अन्य ट्रेडर के साथ ट्रांसफर किया जा सकता है और ट्रेड किया जा सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति अपने कान्ट्रेक्ट से बाहर जाना चाहता है तो वह बाहर जा सकता है जिसके लिये उसे पेनल्टी का भुगतान करना होगा।
- फ्यूचर ट्रेडिंग दो पक्षो का भष्यि मे होने वाला व्यापार है जिसमे हमेशा दोनो पक्षो द्वारा अपने कान्ट्रेक्ट को पुरा ना करने का डर बना रहता है जिसके लिये सेबी द्वारा इसे रेगुलेट किया जाता है। जिससे कोई भी पक्ष बिच मे सोदा छोड कर नही जाता है।
- सेबी द्वारा फ्यूचर ट्रेडिंग को सुचारु रुप से चलाया जाता हे जिसमे डिफाल्ट होने की संभावना ना के बराबर होती है।
- फ्यूचर ट्रेडिंग के अपने नियम होते है वह ट्रेड करने वालो के अनुसार नही होता है। यह अपने मानको पर कार्य करता है।
- फ्यूचर ट्रेडिंग मे सेटलमेंट का एक समय निश्चित होता हे जिसमे दोनो पक्ष अपने कांट्रेक्ट के अनुसार समय पर कांट्रेक्ट पुरा करते है और इसके लिये भोतिक मुवमेंट की आवश्यकता नही होती है।
उदाहरण
फ्यूचर ट्रेडिंग को थ्योरी के रुप मे समझना थोडा मुश्किल हो सकता है इस लिये अइये हम एक साधारण से उदाहरण से समझते है जिससे आप आसानी से फ्यूचर ट्रेडिंग को पूर्ण रुप से समझ पायेंगे
- उदाहरण के लिए, ट्रेडर को लगता है कि RIL के शेयर की कीमत कुछ वार्षिक रिपोर्ट के कारण आने वाले भविष्य में बढ़ने वाली है।
- निवेशक RIL स्टॉक (ऐक्सचेंज पर उपलब्ध) के स्पॉट प्राइस और फ्यूचर प्राईस के लिये जांच करेगा, और दोनों मूल्य एक-दूसरे से संबंधित होंगे।
- ट्रेडर प्रत्येक 100 शेयर ₹155 पर खरीदता है। इसलिए, लॉट साइज 100 है और कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू ₹15,500 है और एक्सपायरी डेट 31 जून 2021 है।
- इसका मतलब यह है कि खरीदे जा सकने वाले RIL शेयरों की न्यूनतम संख्या 100 है।
- जैसे ही मार्जिन मनी खरीदार के मार्जिन खाते में पर्याप्त और प्रतिपक्ष पाया जाता है, निवेश में प्रवेश किया जाता है।
- अब, 31 जून 2021 की एक्सपायरी डेट तक, अगर RIL के शेयरों की कीमत, ₹170 हो जाती है, तो खरीदार की कीमत में वृद्धि की भविष्यवाणी सही हो जाती है तो वह RIL के शेयरों को ₹155 पर खरीद सकता है जो मार्केट मूल्य से ₹15 कम है । तो, कुल लाभ ₹ (100 * 15) = ₹1500 है। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के विक्रेता को ₹1500 का नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि वह मौजूदा मार्केट मूल्य ₹170 होने पर शेयरों को ₹155 पर बेचने के लिए बाध्य होता है।
- यदि RIL शेयरों की कीमत ₹145 के बजाय कम हो जाती है, तो खरीदार को ₹ (100 * 10) =) ₹1000 का नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि उसे ₹155 पर शेयरों को खरीदना होगा जो वर्तमान में ₹145 पर ट्रेडिंग कर रहे हैं। विक्रेता इस मामले में लाभ कमाता है।
- इस परिदृश्य में जब शेयरों की कीमत कुछ दिनों के बाद बढ़ती है, तो खरीदार एक्सपायरी डेट तक इंतजार नहीं करना चाहेगा क्योंकि तब तक कीमतें फिर से नीचे आ सकती हैं, इसलिए वह फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को ट्रांसफर करके अभी भी निवेश से बाहर निकल सकता है। लाभ के साथ एक और पार्टी और करीबी स्थिति।
- सोदा समाप्ता होने के परिणामों को सीधे पार्टियों के मार्जिन खातों से डेबिट या क्रेडिट किया जाता है और किसी भी भौतिक निपटान की आवश्यकता नहीं होती है।
- सोदा समाप्ता होने के परिणामों को सीधे पार्टियों के मार्जिन खातों से डेबिट या क्रेडिट किया जाता है, जिसमे किसी भी भौतिक निपटान की आवश्यकता नहीं होती है।
फ्यूचर ट्रेडिंग की आवश्यकता
फ्यूचर ट्रेडिंग के बारे मे एक बात तो आपको समझ आ गइ होगी की यह एक भविश्य का सौदा है। सामान्यतः फ्यूचर ट्रेडिंग मे पहले पेसे नही होने के कारण व माल रेडी नही होने के कारण फ्यूचर कांट्रेक्ट होते थे। जिसमे आप आज सोदा करते थे और बाद मे वह निश्चित दाम और माल के लेन देन पर समाप्ता होता था। पंरतु वर्तमान मे सभी सेग्मेंट मे फ्यूचर ट्रेडिंग इसी धारणा के साथ शुरु हुई । फ्यूचर ट्रेडिंग होने के कारण आने वाले भविष्य की किमते और इससे जुडे अनुमान आसानी से मिल जाते है जिससे की जिस सेग्मेंट मे फ्यूचर ट्रेडिंग हो रही है वह स्थिर बना रहता है। परंतु स्पाट ट्रेडिंग के समय ऐसा नही होता था,
फ्यूचर ट्रेडिंग मे आपको कोई न्यूनतम पूंजी की आवश्यकता नही होती है। यह आपके सोदे पर निर्भर करता है , यहां आप अपने ब्रोकर से मार्जिन लेकर भी सोदा कर सकते है जो आपके सोदे की समाप्ती पर ब्रोकर को देना होगा।
फ्यूचर ट्रेडिंग मे रिश्क
फ्यूचर ट्रेडिंग मे जिस प्रकार लाभ कमाने की क्षमता है उसी प्रकार इसमे कई सारे रिश्क भी है। यदि आप पहली बार फ्यूचर ट्रेडिंग कर रहे है तो आपको फ्यूचर ट्रेडिंग से जुडे रिश्क के बारे मे जरुर जानना चाहीये।
- फ्यूचर ट्रेडिंग मे आपको अपने पैसे का मेनेजमेंट काफी सावधानी से करना होगा।
- अगर मार्केट आपके अनुसार नही रहा तो आप काफी ज्यादा देनदारीयों मे उलछ सकते है।
- आपको अपने लिये गये निर्णय और होने वाली ट्रेड के के मुल्यो के प्रति बहुत सजग रहाना होता है।
- यदि आपको फ्यूचर ट्रेडिंग के बारे मे ज्यादा जाकारी ही है तो यह आपको काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।
- यदि आप बिच मे सोदा छोडकर जाना चाहते है तो इसमे पेनल्टी भी लग सकती है जो आपके लिये नुकसानदायक होगी।
फ्यूचर ट्रेडिंग के फायदे
- लीवरेज- फ्यूचर ट्रेडिंग मे आपको काफी ज्यादा मार्जिन मिलती है जिससे की आप अपने कांट्रेक्ट के मुल्य का थोडा सा हिस्सा देकर पोजीशन ले सकते है।
- तरलता – फ्यूचर मार्केट मे हर दिन सोदे होते है जिससे की ट्रेडर को काफी ज्यादा तरलता मिलती है
- कम ब्रोकरेज और कमीशन – फ्यूचर ट्रेडिंग मे ब्रोकर काफी कम चार्ज लगाते है जिससे की एक ट्रेडर को अतिरिक्त भार नही पडता है। जिससे वह अधिक सोदे कर सकता है।
- हेजिंग – हेजिंग की सहायता से आप अपने फ्यूचर कांट्रेक्ट मे होने वाले नुकसान को कम कर सकते है या आप सिक्योरीटी की किमत को स्थिर बनाने मे सहायक हो सकते है।
- शार्ट सेलिंग – फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट मे शार्ट सेलिंग कानुनी रुप से वेध है जिससे की यहां शार्ट सेलिंग अधिक होती है।
यह भी पढे- ब्लू चिप (Blue chip) स्टॉक क्या है और इन्हें कैसे पहचाने
शेयर मार्केट में निवेश का सही तरीका (Right way to invest in stock market)
प्रतिभूतियां और इसके प्रकार (Securities and its types)