डेरिवेटिव (derivatives) के अलग-अलग कई सारे उपयोग हैं जोकि परिस्थितियों और तरीकों के अनुसार होते हैं डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट (derivative instrument) को प्रयोग करने के लिए का उपस्थित होना आवश्यक है। बाजार की परिस्थितियां डेरिवेटिव्स (derivative) की आवश्यकता पैदा करती है। परंतु निवेशक किस प्रकार से इनका उपयोग करता है, उस पर निर्भर करता है।
साधारण निवेश(Simple investment)
कुछ लोग ऐसा मानते हैं की डेरिवेटिव (derivative) मार्केट भी सामान्य मार्केट की तरह हे। और उसमें सामान्य निवेश करते हैं। जो निवेशक परंपरागत (traditional) अनुसार निवेश करते हैं, उनके लिए यह एक साधारण निवेश (simple investment) का बाजार है।
आर्बिट्रेज के अवसर का उपयोग (Use of arbitrage opportunity)
मध्यस्थता के चलते कई बार ऐसे अवसर उपलब्ध होते हैं जिससे लाभ उठाने के लिए निवेशक अपनी पोजीशन (position) लेते हैं। और मार्केट में परिस्थितियां निवेश के आकलन के अनुसार गति करती है। तो निवेशक काफी ज्यादा लाभ उठाते हैं। डेरिवेटिव सौदों (derivatives deals) में इन परिस्थितियों के अनुरूप काफी ज्यादा लाभ उठाया जा सकता है। जोकि परिस्थितियां लंबे समय तक बनी नहीं रहती है। इन परिस्थितियों को जल्दी से भुनाना आवश्यक है। डेरिवेटिव ट्रांजैक्शन (derivatives transaction) में घाटे की आशंका भी उतनी ही बनी रहती है।
अतिरिक्त पूंजी का फैलाव(Excess capital spread)
कई सारे निवेशकों के पास अतिरिक्त धन (extra money) होता है। जो नए अवसरों की तलाश में रहते हैं । एक तरफ जहां वे इस धन (money के प्रवाह को बनाए रखते हैं । वहीं दूसरी तरफ कम धन वाले निवेशकों को उसका फायदा होता है। डेरिवेटिव (derivatives) द्वारा निवेशक का रास्ता इस श्रेणी के निवेशकों के लिए उपयुक्त विकल्प है ।
डेरिवेटिव (derivatives) मार्केट में हमेशा रोलिंग (rolling) होता रहता है । और निश्चित अंतराल में यहां रिटर्न भी अच्छा मिलता है। वे लोग जो सदैव अतिरिक्त कमाना चाहते हैं और घाटे (losses) की परवाह नहीं करते उन निवेशकों के लिए डेरिवेटिव मार्केट (derivatives market) उनका पसंदीदा स्थान है।
अतिरिक्त पोजीशन (Additional position)
डेरिवेटिव मार्केट (derivatives market) में निवेशक हमेशा अतिरिक्त पोजीशन (extra position) को ज्यादा महत्व देता है। डेरिवेटिव मार्केट (derivatives market) यह सुविधा उपलब्ध होती है। जिससे कि निवेशक अतिरिक्त पोजीशन ले सकता है । यदि अतिरिक्त पोजीशन सही से ली जाए तो यह काफी लाभकारी होती है। किसी अतिरिक्त पोजीशन सदैव अच्छा विकल्प हो यह जरूरी नहीं है । परंतु यह प्रभाव कारी होती है , जब भी अतिरिक्त पोजीशन ली जाए तो दिमाग में हमेशा जोखिम को ध्यान में रखना चाहिए।
सट्टेबाजी (speculation)
पूरे विश्व (all over the world) में डेरिवेटिव का सबसे ज्यादा उपयोग सट्टेबाजी (speculation) के लिए किया जाता है। आम निवेशक के लिए यह तरीका सही नहीं है। क्योंकि बाजार की परिस्थितियां यदि विपरीत (Adverse) तो भारी नुकसान हो सकता है। जो लोग घाटा उठाने की क्षमता रखते हैं।
इससे निवेशक डेरिवेटिव में सट्टेबाजी (speculation) के माध्यम से पूरी कर सकते हैं। सट्टेबाजी (speculation) का प्रयोग अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है जिसमें जोखिम (risk) अधिक होता है। सभी निवेशकों के लिए उस speculation का तरीका एक जैसा नहीं होता, फिर भी बाजार में सट्टेबाजी का उपयोग किया जाता है।
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भारत में डेरिवेटिव मार्केट(Derivatives Market in India)
भारत में डेरिवेटिव (Derivatives) बाजार काफी पहले से मौजूद थे, परंतु यह स्थनिय नाम से जाना जाता था। वर्तमान में सिक्योरिटी कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट 1956 के अनुसार डेरिवेटिव (Derivatives) को एक सिक्योरिटी (security) माना गया है। जिसके जिसके अंतर्गत अन्य सिक्योरिटी (security) जैसे डेब्ट, इंस्ट्रूमेंट, बांड, डिवेंचर, लोन या कोई इंस्ट्रूमेंट में हो।
डेरिवेटिव (Derivatives) का मूल्य के अंतर्गत सिक्योरिटी के मूल्य के अनुसार निर्देशित होता है। इस एक्ट के तहत करार को भी डेरिवेटिव माना गया है। जिसका मूल्य अंतर्निहित सिक्योरिटी (built-in security) या सिक्योरिटी की कीमत के सूचकांक से निर्देशित होता है।
ओवर ऑल ट्रेडिंग (Over all trading)
भारत में डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट (derivative instrument) की ट्रेडिंग निर्धारित नियम और कानून के तहत की जाती है। पूरी ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज (stock exchange) के माध्यम से होती है, जहां खरीदी बिक्री कॉन्ट्रैक्ट (contract) ऑफर ट्रेडिंग की सारी प्रक्रिया है। ऑटोमेटिक कंप्यूटराइज टर्मिनल (automatic computerized terminal) के माध्यम से होती है। ऑटोमेटिक प्रक्रिया पर ऑनलाइन निगरानी (Surveillance) भी रखी जाती है। जिसकी वजह से पूरी पारदर्शिता होती है।
डेरिवेटिव मार्केट में फ्यूचर कांट्रैक्ट (futures contract) की व्यवस्था भी उपलब्ध है। जिसकी वैलिडिटी (validity) 3 महीने की होती है और हर महीने की शुरुआत में एक नया फ्यूचर कांट्रैक्ट अस्तित्व में आता है और प्रत्येक माह के अंतिम गुरुवार (Thursday) को एक फीचर कांट्रैक्ट समाप्त होता है जो 3 माह पूर्व शुरू हुआ था।
सदस्यता(Membership)
डेरिवेटिव मार्केट में निवेश करने के लिए किसी भी व्यक्ति को एक्सचेंज (exchange) के फ्यूचर तथा ऑप्शन साइट की सदस्यता लेनी आवश्यक है। इसमें क्लीयरिंग (clearing) मेंबर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि यह आपके किए गए सोदे (deal) के निपटान करते हैं और रिस्क मैनेजमेंट (risk management) तथा सोदे (deal) के सेटलमेंट करते हैं।
क्लीयरिंग (Clearing)
आसान और त्रुटिरहीत क्लीयरिंग (flawless clearing) पूरे ट्रेडिंग सिस्टम को मजबूत आधार प्रदान करती है। क्लीयरिंग मेंबर प्रत्येक ट्रेडिंग दिवस (trading day) के समापन के पश्चात अपने ट्रेडिंग मेंबर की ओपन पोजीशन (position) तैयार करता है। इससे विभिन्न ट्रेडिंग मेंबर के एप्लीकेशन पता चलते हैं। उसमें कस्टोडियल पार्टिसिपेंट (custodial participant) के लिए की गई क्लीयरिंग भी शामिल होती है।
ट्रेडिंग मेंबर दो प्रकार के होते सोदे (deal) करता है एक वह अपने स्वयं के लिए और दूसरा वह अपने क्लाइंट (client) के लिए करता है। किसी भी सोदे के लिए ट्रेडिंग मेंबर को यह दिखाना आवश्यक है कि वह सौदा किस प्रकार का है, और क्लीयरिंग मेंबर इन दोनों प्रकार के सौदों की फाइल पोजीशन प्रत्येक ट्रेडिंग दिवस के आखरी में तैयार करता है।
सेटलमेंट (settlement)
ओपन पोजीशन (open position) के द्वारा जरूरतों तथा स्थिति का जायजा मिलने के पश्चात सेटलमेंट (settlement) की बारी होती है। सेटलमेंट (settlement) से तात्पर्य यह है जो पोजीशन ओपन होती है। उनको एडजेस्ट (adjust) करना होता है डेरिवेटिव मार्केट में फ्यूचर तथा ऑप्शन सौदों को केस एडजस्टमेंट के द्वारा सेटल किया जाता है।
बाकी सिक्योरिटी (security) के आदान-प्रदान के दौरान सेटलमेंट नहीं होता, अपितु इन सौदों की कीमत के अनुसार राशि का एडजस्टमेंट (adjustment) किया जाता है।
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